यह कहानी है मुजफ्फरनगर जिले के एक गांव खेड़ी अलीपुर की। इस गांव में एक लड़के का जन्म हुआ, माता-पिता ने अपने इस बालक का नाम वीरसिंह रखा। लेकिन, जब यह लड़का साढ़े तीन साल का हुआ तो वीरसिंह के माता-पिता के सामने एक समस्या आ खड़ी हुई।
समस्या यह थी कि वीरसिंह को अपना पूर्वजन्म की बातें याद आ गई थी। वीरसिंह ने बताया कि पूर्वजन्म में वह शिकारपुर के पं. लक्ष्मीचन्द जी बेटा था लोग उसे सोमदत्त के नाम से पुकारते थे।
पूर्वजन्म की स्मृति लौट आने के बाद वीरसिंह अपने इस जन्म के माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहता था। वीरसिंह बार-बार अपने पूर्वजन्म के माता-पिता के पास जाने की जिद्द करता।
लोग वीरसिंह की बातें सुनकर हैरान थे। ऐसी घटनाओं की चर्चा जंगल के आग की तरह फैलती है, यह बात शिकारपुर के पं.लक्ष्मीचंद जी कानों में भी पहुंची जो वीरसिंह के पूर्वजन्म के पिता थे। लक्ष्मीचंद बात की सच्चाई जानने के लिए अलीपुर पहुंच गए।
ऐसे लौटी पूर्वजन्म की यादें
बालक वीरसिंह को चौपाल में बुलाया गया जहां लक्ष्मीचंद बैठे थे। बालक ने जैसे जी लक्ष्मीचंद को देखा पिता जी कहते हुए आकर उनसे लिपट गया। चौपाल में मौजूद सभी लोग इस दृश्य को देखकर चकित थे। लक्ष्मीचंद जी अपने पूर्वजन्म के पुत्र से मिलकर भावुक हो उठे और आंखों से आंसू बह निकले।
वीरसिंह को अपने पूर्वजन्म के घर पर लाया गया। यहां उसने अपनी मां और बहनों के अलावा उन भाईयों को भी पहचान लिया जिनका जन्म सोमदत्त के मरने के बाद हुआ था। लोग इस बात से सबसे ज्यादा हैरान थे कि भला सोमदत्त उन भाइयों को कैसे पहचान लिया जिसे उसने पूर्वजन्म में देखा नहीं था।
वीरसिंह ने लोगों के सभी प्रश्नों का उत्तर देते हुए बताया कि उसे पूर्वजन्म की स्मृति उस समय हुई जब वह दोस्तों से साथ खेल रहा था और पूर्वजन्म की मां उसके सामने से गुजरी। मां को देखते ही उसे पूर्वजन्म की सभी बातें याद आ गई।
मरने के बाद 9 साल तक कहां और किस रुप में रहा
क्यों मरने के बाद होने वाली घटना याद थी उसे?
वीरसिंह ने लोगों को बताया कि जब उसकी मृत्यु हो गई तो उसे कोई शरीर नहीं मिला। इसलिए वह अपने पूर्वजन्म के घर के पास एक पीपल के पेड़ पर नौ साल तक प्रेत बनकर रहा। जब उसे प्यास लगती तो कुएं में जाकर पानी पी लेता और भूख लगती तो रसोई में जाकर रोटी खा लेता था।
प्रेत रुप में ही उसने अपने उन भाईयों को देखा था जिनका जन्म उसकी मृत्यु के बाद हुआ था। वीरसिंह की बातों को सुनकर इस जन्म के रिश्तेदारों और पूर्वजन्म के रिश्तेदारों ने यह मान लिया कि सोमदत्त ने ही वीरसिंह के रुप में दूसरा जन्म लिया है।
लेकिन अब समस्या यह थी कि वीरसिंह किसके साथ रहेगा। बेटे के जिद्द के आगे इस जन्म के माता-पिता मजबूर हो गए और उन्होंने पूर्वजन्म के पिता लक्ष्मीचंद को उनका बेटा सौंप दिया। लेकिन वीरसिंह का नाता दोनों परिवारों से बना रहा और वीरसिंह को एक साथ दो मां और दो पिता का स्नेह मिला।
यह परामनोविज्ञान की एक अद्भुत घटना है जिसका उल्लेख गीताप्रेस द्वारा प्रकाशित परलोक और पुनर्जन्म की सत्य घटनाएं नामक पुस्तक में की गई। यह घटना आज से 64 साल पुरानी है।