यह कथा उत्तर प्रदेश के जिला सुल्तानपुर के कादीपुर क्षेत्र की है । एक सामान्य ईश्वर भक्त गृहस्थ था । वह पेशे से कृषक था । और उसका एक भरापूरा परिवार था । उसकी एक दिन लगभग 60 वर्ष की आयु में सामान्य रूप से मृत्यु हो गई । सामान्य घटना समझकर परिवार वालों ने अन्त्येष्टि का प्रबन्ध किया । और थोडी दूर स्थित शमशान ले चले । श्मशान स्थल पहुंचकर जब तक लकडी आदि का प्रबंध हो । तब तक शव को एक वृक्ष के नीचे रखकर सगे संबंधी भी विश्राम करने बैठ गए । अचानक वृद्ध के सबसे छोटे पुत्र की निगाह अपने मृत पिता के चेहरे की ओर गई । जिस पर मक्खियां आ रही थीं । उसने उन्हें अपने गमछे से शोक विहवल हो हवा करते हुए पाया कि उसके पिता के होंठ कुछ फ़डक रहे हैं । उसे सहसा अपने आंखों पर विश्वास नहीं हुआ । उनका फ़डकना जारी ही रहा । फ़िर उनके पलकों में भी गति आना आरंभ हो गई । यह देखकर उसने अपने बडे भाइयों को आवाज दी । यह एक असामान्य घटना थी । सभी लोग उसके पास चले गए । तभी किसी रिश्तेदार ने उनके बंधन खोल देने की सलाह दी । ऐसा करने के कुछ देर बार उनके पूरे शरीर में हलचल प्रारंभ हो गई । और लगभग आधे घंटे बाद वह वृद्ध यों उठ बैठा । जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं हो । उसने बताया कि जिस क्षण उसकी मृत्यु हुई । उसी क्षण उसने अपने शरीर से निकलकर और सूक्ष्म शरीर के पास पाया । वह सभी लोगों को भलीभांति देख सुन रहा था । जो उसकी मृत्यु पर शोक कर रहे थे । उसे अपने सभी संबंधी प्रिय तो लग रहे थे । लेकिन अपने इस नए शरीर से वह इतना प्रसन्न था कि उसे किसी के प्रति मोह ममता नहीं रह गई । उसे वहीं खडे खडे सामने प्रकाश का अनंत पुंज दिखाई दे रहा था । और ऐसी शीतलता अनुभव हो रही थी । जैसी उसने पूरे जीवन में अनुभव नहीं की थी । वह अपने शरीर में लौटना भी नहीं चाह रहा था । उसे ऐसी इच्छा हो रही थी कि वह ऊपर उडता चला जाए । इसी आनंद में उसे अचेतनावस्था आ गई । तभी उसे ध्वनि सुनाई दी कि उसका बहनोई कह रहा है कि इनकी रस्सियां तो ढीली कर दो । और तब भान हुआ कि वह पुन: अपनी देह में वापस आ गया है । उसे लगा जैसे उसका कुछ भाग शेष रह गया हो । और ईश्वर ने उसे पुन: धरती पर भेज दिया हो ।