जन्म और मृत्यु ये दो अटल सत्य माने गए हैं। जिस जीव ने धरती पर जन्म लिया है उसे एक दिन अवश्य ही मृत्यु प्राप्त होती है। जीव की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा पुन: जन्म लेती है, यह भी एक सत्य है। शास्त्रों के अनुसार जीवन और मृत्यु का यह चक्र अनवरत चलता ही रहता है।
आत्माएं फिर से जन्म क्यों लेती हैं? इस संबंध में आठ कारण मुख्य रूप से बताए गए हैं। इन्हीं कारणों की पूर्ति के लिए आत्मा पुन: जन्म लेती है, शरीर धारण करती है। यहां पुनर्जन्म का अर्थ है दुबारा जीवन प्राप्त करना। किसी भी जीवात्मा का पुन: यानि फिर से जन्म होता है। आत्मा शरीर धारण करके शिशु रूप में इस धरती पर जन्म प्राप्त करती है और जीवनभर कर्म करती है। अंत में मृत्यु होने पर उसे शरीर छोड़कर जाना पड़ता है। ऐसे में आत्मा को मुख्य रूप से इन आठ कारणों से उसे पुन: जन्म लेना पड़ता है।
शास्त्रों के अनुसार आत्मा के पुनर्जन्म के संबंध में बताए गए आठ कारणों में से एक कारण है कि आत्मा किसी से बदला लेने के लिए पुनर्जन्म लेती है।
यदि किसी व्यक्ति को धोखे से, कपट से या अन्य किसी प्रकार की यातना देकर मार दिया जाता है तो वह आत्मा पुनर्जन्म अवश्य लेती है। इस संबंध में वेद-पुराण में एक कथा दी गई है-
कथा इस प्रकार है, एक राजकुमार की किसी तपस्वी से गहरी मित्रता हो गई। जब वह महात्मा काशी जा रहा था तभी राजकुमार भी जिद करके अपने मित्र के साथ चल दिया। राजकुमार की इस यात्रा के लिए राजा ने उन्हें सवा सेर सोना एक लकड़ी में भरकर दे दिया। सफर के दौरान एक रात्रि दोनों मित्रों ने एक सेठ के यहां विश्राम किया। रात्रि में उस सेठ ने लकड़ी में से सोना निकालकर उसमें कंकड़ भर दिए। राजकुमार और महात्मा जब काशी पहुंचे तब उन्होंने वहां के ब्राह्मणों को भोजन पर आमंत्रित कर लिया। ब्राह्मणों को भोजन कराने के लिए जब उसने लकड़ी से सोना निकालना चाहा तब उसमें से कंकड़ निकले। वह समझ गया कि उस सेठ ने उन लोगों के साथ धोखा किया है। ब्राह्मणों को खाना के निमंत्रण भिजवा दिया गया था लेकिन राजकुमार उन्हें भोजन कराने में असर्मथ हो गया। इसी चिंता में राजकुमार के प्राण चले गए।
राजकुमार की आत्मा ने सेठ से बदला लेने के लिए उसी सेठ के यहां पुन: पुत्र रूप में जन्म लिया। जब सेठ का पुत्र बड़ा हो गया तब उसकी शादी कराई गई। सेठ ने पुत्र के लिए बहुत सुंदर और विशाल महल बनवाया। एक दिन उसी महल की छत से पति-पत्नी दोनों ने कूदकर जान दे दी। तब सेठ को बहुत दुख हुआ। उस समय राजकुमार के मित्र महात्मा ने सेठ को उसकी करनी की कथा सुनाई और इसप्रकार राजकुमार का बदला पुरा हुआ।