power of restraint

संयम की शक्ति – ब्रह्मचर्य विज्ञान | Power of restraint – brahmacharya vigyan

 

ब्रह्मचर्य का ऊँचे में ऊँचा अर्थ यही हैः ब्रह्म में विचरण करना। जो ब्रह्म में विचरण करे, जिसमें जीवनभाव न बचे वही ब्रह्मचारी है। ‘जो मैं हूँ वही ब्रह्म है और जो ब्रह्म है वही मैं हूँ….’ ऐसा अनुभव जिसे हो जाये वही ब्रह्मचर्य की आखिरी ऊँचाई पर पहुँचा हुआ परमात्मस्वरूप है, संतस्वरूप है।

संयम की आवश्यकता सभी को है। चाहे बड़ा वैज्ञानिक हो या दार्शनिक, विद्वान हो या बड़ा उपदेशक, सभी को संयम की जरूरत है। स्वस्थ रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है, सुखी रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और सम्मानित रहना हो तो भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है।

कोई चारों वेद पढ़कर कंठस्थ कर ले एवं उसका अर्थ भी समझ ले – उसके पुण्य को तराजू के एक पलड़े पर रखें और दूसरे पलड़े पर कोई अँगूठाछाप है लेकिन आठ प्रकार के मैथुन से बचा है उसका पुण्य रखें तो ब्रह्मचारी का पलड़ा भारी होगा। वेद पढ़ना तो पुण्य है, कंठस्थ करना भी पुण्य है लेकिन कोई भले अँगूठाछाप है किंतु संयमी है तो उसका पुण्य भी वेदपाठी से कम नहीं होता है। यह चतुर्वेदी से कम नहीं माना जायेगा। संयम ऐसी चीज है ! ब्रह्मचर्य बुद्धि में प्रकाश लाता है, जीवन में ओज-तेज लाता है। ब्रह्मचर्य ऊँची समझ लाता है किः “अपनी आत्मा ब्रह्म है, उसको पहचानना ही हमारा लक्ष्य है।’ अगर ब्रह्मचर्य नहीं है तो गुरुदेव दिन-रात ब्रह्मज्ञान का उपदेश देते हैं फिर भी टिकता नहीं।

जो ब्रह्मचारी रहता है, वह आनंदित रहता है, निर्भीक रहता है, सत्यप्रिय होता है। उसके संकल्प में बल होता है, उसका उद्देश्य ऊँचा होता है और उसमें दुनिया को हिलाने का सामर्थ्य होता है। स्वामी विवेकानंद को ही देखें। उनके जीवन में ब्रह्मचर्य था तो उन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय अध्यात्मज्ञान का ध्वज फहरा दिया था, भारत के दिव्य ज्ञान का डंका बजा दिया था।

हे भारत की युवतियो व युवानों ! तुम भी उसी गौरव को हासिल कर सकते हो। यदि जीवन में संयम को अपना लो, सदाचार को अपना लो एवं समर्थ सदगुरु का सान्निध्य पा लो तो तुम भी महान-से-महान कार्य करने में सफल हो सकते हो। लगाओ छलाँग…. कस लो कमर…. संयमी बनो…. ब्रह्मचारी बनो और ‘युवाधन सुरक्षा अभियान’ के माध्यम से अपने भाई-बन्धुओं, मित्रों, पड़ोसियों, ग्रामवासियों, नगरवासियों, प्रांतवासियों को भी संयम की महिमा समझाओ और शास्त्र की इस बात को चरितार्थ करो।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःखभाग्भवेत्।।

“सभी सुखी हों, सभी निर्मल मानसवाले हों, सभी सबका मंगल देखें और दूसरों के दुःख में सहभागी हों, दुःख हर्ता हों।’

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