हाथ की पांच उंगलियों में अंगूठे व मध्यमा के बीच की उंगली तर्जनी कहलाती है। अन्य उंगलियों की अपेक्षा इसका विशेष महत्व देखा गया है। विभिन्न नित्य कार्यों के अलावा धार्मिक कार्यों, ज्योतिष, नृत्य मुद्राओं, योग मुद्राओं आदि में इसकी भूमिका होती है।
निम्न बातें (तथ्य) तर्जनी के इस महत्व को पुष्ट करती हैं : –
* पांच उंगलियों में पांच तत्व निहित हैं- अंगूठा-अग्नि, तर्जनी-वायु, मध्यमा-आकाश, अनामिका-पृथ्वी व छोटी में जल। इनमें तर्जनी का ‘वायु’ तत्व सभी को संतुलित रखने में सहायक होता है।
* तर्जनी व अंगूठे के स्पर्श से की जाने वाली ‘ज्ञान मुद्रा’ ज्ञान वृद्धि व मानसिक शुद्धि करती है। साथ ही यह मुद्रा ध्यान, योग व प्राणायाम में भी प्रयुक्त होती है।
* नृत्य अथवा करतब में थाली या किसी चीज को इसी उंगली पर घुमाया जाता है। कहते हैं श्रीकृष्ण ने भी सुदर्शन इसी पर थामा था।
* बाण (तीर) चलाने में अंगूठे या मध्यमा के साथ तर्जनी का संग जरूरी है।
* चुप रहने के इशारे में इसी उंगली को मुंह पर रखा जाता है।
* जाने का इशारा करना, किसी को बाहर करना हो, तर्जनी ही उठती है।
* कोई खाद्य चखना हो, इसी को डूबाकर, छूकर मुंह तक लाया जाता है।
* इनके अतिरिक्त भी कई कार्य हैं जिनमें अंगूठे के साथ तर्जनी प्रयुक्त की जाती है जैसे- कलम पकड़ना, सुई में धागा पिरोना, कंचा फेंकना, चुटकी भरना, बटन लगाना आदि।