durbhaga nadi

दुर्भगा नाडी – नाड़ी ज्योतिष | Durbhaga Nadi – nadi jyotish

 

► परिचय
स्त्री या पुरुष दोनो के लिये ही दुर्भगा नाडी अपने अपने अनुसार जीवन को नर्क बना देने के लिये अपना असर देती है। इस नाडी काल में जन्म होने पर किसी विवाह सम्बन्धी बात पक्की करने पर बच्चे के पैदा होने पर सन्तान की शादी में किसी धार्मिक कार्य करने पर किसी भी प्रकार की जीविका सम्बन्धी कार्य की शुरुआत में अगर यह नाडी है तो जीवन को नर्क बनाने से कोई रोक नही सकता है।

► पुरुष का जन्म
किसी पुरुष का जन्म दुर्भगा नाडी के काल में हुआ,यह स्त्री तत्व वाली नाडी उस पुरुष से सम्बन्ध रखने वाली किसी भी स्त्री के लिये चाहे वह माँ बहिन बुआ चाची ताई दादी नानी मामी मौसी पुत्री पत्नी साली सलहज या जो भी सामाजिक रिस्तों के अन्दर स्त्री जाति आयेगी वह हमेशा किसी न किसी प्रकार का बुरा फ़ल ही प्रदान करके जायेगी। अक्सर इस नाडी के अन्दर पैदा होने वाले जातक की पत्नी कितने ही अच्छे सितारे लेकर पैदा हुयी हो,लेकिन स्वभाव से सभी सितारों को धता बताकर इस नाडी का असर उस पुरुष की पत्नी पर जरूर आयेगा। और इस नाडी के प्रभाव से पुरुष की जिन्दगी के लिये एक ऐसा प्रभाव देगा कि वह अपने न तो मार सकेगा और न ही जिन्दा रख सकेगा।

► नाडी के अनुसार स्वभाव
इस नाडी के नाम के अनुसार ही इसका स्वभाव बनाने के लिये यह प्रकृति से तत्वों को प्रकट करती है। मलिन अवस्था वाली नाडी अपने कर्मों को मलिनता की तरफ़ ले जाती है,और संस्कार जो भी सामाजिक या धार्मिक या आर्थिक होते है सभी के अन्दर अपनी गंदगी को आच्छादित कर देगी। दुर्भगा नाडी के स्वभाव में शारीरिक मलिनता के बाद मानसिक मलिनता प्रकृति के अन्दर से मलिन कारकों को आकर्षित करने का स्वभाव बहुत ही खतरनाक माना जाता है। जैसे एक स्त्री को वह इतनी खूबसूरत बना देगी कि वह अपने खूबशूरती के बल पर किसी भी पुरुष को आकर्षित करने के लिये काफ़ी होगी,समयानुसार वह अपने सामाजिक पारिवारिक तथा कर्तव्यों को भूल कर उन मार्गों पर चलने के लिये उन्मुख हो जायेगी जो कभी भी समाज की नजरों में अच्छे नही देखे जाते है। रति सुख के अन्दर अपने स्वास्थ्य की कल्पना को ही मुख्य कारक मानेगी और पति को यौनाचार वाले रोग और उसी प्रकार के कारक तथा पैदा होने वाली सन्तान को जन्म से ही रोगी या किसी ऐसे असाध्य रोग को प्रकट करेगी कि जिस तरह से उसने अपने आकर्षण के बल पर दूसरे पुरुषों के बल और वीर्य को क्षीण किया उसी प्रकार से उसके भी अपने बच्चों और पति की आयु और बल की क्षीणता शुरु हो जायेगी। वह अपने शरीर को ही अपनी आत्मा और संसार समझेगी तथा किसी भी प्रकार के सामाजिक धार्मिक और न्याय वाले काम को धता बताकर अपने स्वार्थ की पूर्ति करने के लिये अग्रसर रहेगी। अपने कारणों को पैदा करने के बाद वह समाज व्यक्ति और मर्यादा से पूर्ण व्यक्ति के समीप आने के बाद अपने कलुषित स्वभाव से अपने प्रकार के गुण पैदा कर जायेगी और उसी के कारण उस व्यक्ति का जीवन भी किसी न किसी प्रकार से दाग युक्त हो जायेगा। व्यक्ति उसे भूलने में भी नही रहेगा और याद करने के बाद भी अपने को किसी न किसी कारण से असमर्थ समझेगा। इस नाडी का अंश वृश्चिक राशि,कर्क राशि,मीन राशि में अधिकता से कार्य करने वाला और शीघ्रता से फ़लदायी होता है,इन राशियों की प्रकृति के अनुसार ही उसका विकास होगा और उसी के अनुसार अपने स्वभाव को समाज और संसार में प्रदर्शित करने के लिये योग्यता भी होगी। अगर गुरु की स्थिति कुंडली के अन्दर वक्री हो गयी है तो वह एक प्रकार से जिन्दा रहते हुये भी पुरुष जातक को लाश की तरह से रहने के लिये मजबूर कर देगी।

► विवाह का रिस्ता
दुर्भगा नाडी के समय में अगर कोई विवाह का रिस्ता तय किया जाता है तो वह रिस्ता भले ही अन्य सभी कारकों से पूर्ण और फ़लदायी हो लेकिन अपने अनुसार इस नाडी का प्रभाव जीवन में शुरु में धीरे धीरे और दूसरी साल से या पांचवी साल से अथवा आठवीं साल से उग्र रूप में सामने आने लगेगा। एक ब्राह्मण को भी राक्षसी स्वभाव का बनाने के लिये और एक सचरित्र स्त्री को भी दुश्चरित्र बनाने में यह नाडी अपने को आगे ही रखेगी। शिक्षा के समय प्रवेश के समय भी यह नाडी अपना असर इस प्रकार से देती है कि विद्यार्थी बहुत ही बुद्धिमान है और सभी विषयों में पूर्ण दक्ष है लेकिन किसी भी तरह से अपने काल में यह नाडी किसी स्त्री मुलाकात या किसी पुरुष मुलाकात के बाद अपने भूत को सिर में भर देगी और वह विद्यार्थी चाहे स्त्री हो या पुरुष लगातार मलिनता की तरफ़ अपना रुख कर लेगा,उसके लिये संसार की कोई दवाई काम नही करेगी और किसी भी प्रकार की शिक्षा उसके अन्दर झल्लाहट पैदा करने वाली होगी। मलिनता की हद तब और अधिक बढ जायेगी जब विद्यार्थी अपने को नशे वाली आदतों से अपना होश नही रहेगा और वह अपने ही मल को खाने से भी अधिक नशे के कारण नही चूकेगा। यह नाडी सबसे अधिक असर यौनांगों पर देती है,बुद्धि के अन्दर केवल यौन सम्बन्ध ही समझ में आते है,हर पुरुष किसी भी स्त्री के अन्दर अपने को यौन रत देखता है और हर स्त्री अपने को हर पुरुष के साथ मानसिक वासना की पूर्ति के लिये देखती है,उसके अन्दर उम्र का भी कोई लिहाज नही होता है,चाहे स्त्री सत्तर साल की भी है या पुरुष भी गर्दन हिला रहा है,यहाँ तक कि स्त्री या पुरुष पशुओं से भी विषय भोग की कामना में लगे रह सकते है। इस नाडी में पैदा होने वाले जातक या इस नाडी के अन्दर सम्बन्ध बनाने बनाने वाले लोग तीन साल की कन्या को भी अपनी हवस की नजर से ही देखते है और अक्सर इस नाडी में पैदा होने वाले जातक अपनी उम्र की आथवीं साल में ही किसी न किसी प्रकार की यौन क्रिया के अन्दर चले जाते है। इस नाडी की देवी शाकिनी को माना गया है,तथा शाकिनी का मुख्य रूप पुरुष के वीर्य रूपी शरीर के सूर्य को पीना और स्त्री के शुक्र रूपी रज को पान करना माना जाता है,इन्ही कारणों से वह अपने प्रभाव को शरीर के अन्दर प्रवेश करवा देती है तथा स्त्री और पुरुष दोनो ही कामान्ध होकर अपने जीवन को नर्क बनाते चले जाते है। व्यापार को भी अगर इस नाडी के अन्दर शुरु किया जाता है तो व्यक्ति के अन्दर वे आदते आजाती है कि पुरुष स्त्री को और स्त्री पुरुष को अपने कार्य के लिये आर्थिक और सामाजिक तथा नये नये ग्राहक पैदा करने के लिये प्रयोग करने लगते है,आर्थिक रूप से अपने को मजबूत बनाकर केवल मिलने वाले ग्राहकों से धन और बल की प्राप्ति करने के लिये कोई भी प्रयोग करने से नही चूकते है।

► नाडी के प्रभाव से बचाने के लिये
इस नाडी के प्रभाव से बचाने के लिये जातक को जो उपाय फ़ायदा देते देखे गये है वे इस प्रकार से है:-

1. जातक के वजन के बराबर सात अनाज का आटा लेकर उसे गूंद कर उसकी छोटी छोटी गोली बनाकर मीठे पानी मछलियों को खिलायीं जायें.
2. जातक को समुद्र स्नान करवाकर शिवार्चना और रुद्राभिषेख करवा जाये.
3. जातक को रात को सोते समय चावल और दूध नही दिया जाये.
4. आठ साल से बडे बच्चे को और बच्ची को किसी भी पुरुष या स्त्री के साथ अकेला नही रखा जाये,इससे भी बडे पुरुष और स्त्री को अन्य पुरुष या स्त्री से दूर ही रखा जाये,यहाँ तक कि भाई की पत्नी और पुत्र वधू चाची या ताई मौसी जैसी स्त्री को भी पास में अकेला नही रहने दिया जाये इसके विपरीत कन्या जातक के साथ भी इसी प्रकार के रिस्तों से दूर ही रखा जाये.
5. जातक को होस्टल आदि से निकाल कर पारिवारिक सुरक्षा में रखा जाये और प्रतिदिन पत्ते वाली कोई न कोई सब्जी सरसों के तेल में पकाकर खिलायी जाये.
6. तामसी वस्तुयें अगर घर में प्रयोग होती हो तो उन्हे तुरन्त बन्द कर दिया जाये,और किसी प्रकार से नींद आने की दवायी या अन्य प्रकार के एल्कोहल का प्रयोग नही किया जाये.
7. रत्न के रूप में केवल सुलेमानी पत्थर ही काम करता देखा गया है,जो चित्त वृत्ति को भटकने नही देता है,इसे काले धागे में जातक को पहिनाया जाये.

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