1930 में दिल्ली में शांतिदेवी नामक एक लड़की रहा करती थी। चार साल की उम्र तक वह बहुत कम बोलती थी। फिर उसने बोलना शुरू किया तो सबकी बोलती बंद कर दी। चार साल की शांति ने माता-पिता से कहा कि यह उसका असली घर नहीं है। उसका घर मथुरा में है जहां उसका पति और बच्चे रहते हैं और उसे उनके पास वापस जाना है।
उसने बताया कि उसका नाम लुगड़ी देवी था और बच्चे को जन्म देने के दौरान उसकी मौत हो गई थी। शांति के माता-पिता समझे कि ये पुनर्जन्म का मामला है। उन्होंने शांति को समझाया कि बेटा अपनी पिछली जिंदगी भूल जाओ, लेकिन शांति के दिमाग से ये सब नहीं निकला। उसने स्कूल में भी अपनी टीचर को ये बातें बताईं।
टीचर ने तहकीकात के लिए शांति के बताए पते पर मथुरा पत्र लिखा। जल्द ही उन्हें शांति के बताए गए पते से पिछले जन्म के पति का जवाब मिल गया। उसने बताया कि कुछ साल पहले उसकी पत्नी लुगड़ी देवी की प्रसूति के दौरान मौत हुई थी।
शांति से मथुरा वाले घर के बारे में जो कुछ भी पूछा गया, वो सब सच निकला। यह मामला काफी चर्चित हो गया था। महात्मा गांधी सहित उस दौर के सभी बड़े नेता और अधिकारियों ने मामले की जांच की थी। आशंका थी कि कहीं कोई उसे ये सब जानकारी तो नहीं दे रहा है, लेकिन ऐसी कोई बात सामने नहीं आई।
शांति ने अपने पति और बच्चों को भी पहचान लिया था। उससे पुरानी जिंदगी के बारे में बहुत से सवाल किए गए। उसमें से करीब 24 सवालों का उसने सही जवाब दिया। उसे जब मथुरा ले जाया गया तो वहां भी वह लोगों को पहचानकर उनसे बातें करने लगी। भारतीय संस्कृति में तो पुनर्जन्म को माना जाता है, लेकिन दूसरे देशों के वैज्ञानिकों के लिए ये रहस्य बना रहा कि चार साल की बच्ची ऐसा कैसे कर सकती थी।
राज है गहरा
1930 में दिल्ली की शांतिदेवी पर काफी रिसर्च किया गया। फिर भी ये साबित नहीं किया जा सका कि यह दिमागी बीमारी थी या पुनर्जन्म का मामला था।