benefits of semen protection

वीर्यरक्षा से लाभ – ब्रह्मचर्य विज्ञान | Benefits of semen protection – brahmacharya vigyan

 

► वीर्यरक्षा से कितने लाभ होते हैं
वीर्यरक्षा से कितने लाभ होते हैं यह बताते हुए डॉ. मोलविल कीथ (एम.डी.) कहते हैं- “वीर्य तुम्हारी हड्डियों का सार, मस्तिष्क का भोजन, जोड़ों का तेल और श्वास का माधुर्य है। यदि तुम मनुष्य हो तो उसका एक बिन्दु भी नष्ट मत करो जब तक कि तुम पूरे 30 वर्ष के न हो जाओ और तभी भी केवल संतान उत्पन्न करने के लिए। उस समय स्वर्ग के प्राणधारियों में से कोई दिव्यात्मा तुम्हारे घर में आकर जन्म लेगी, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।”

► आधुनिक चिकित्सकों की दृष्टि में ब्रह्मचर्य
यूरोप के प्रतिष्ठित चिकित्सक भी भारतीय योगियों के कथन का समर्थन करते है। डॉ. निकोल कहते हैं- “यह एक भैषजिक और दैहिक तथ्य है कि शरीर के सर्वोत्तम रक्त से स्त्री तथा पुरुष दोनों ही जातियों में प्रजनन तत्त्व बनते हैं। शुद्ध तथा व्यवस्थित जीवन में यह तत्त्व पुनः अवशोषित हो जाता है। यह सूक्ष्मतम मस्तिष्क, स्नायु तथा मांसपेशीय उत्तकों (Tissues-कोशों) का निर्माण करने के लिए तैयार होकर पुनः परिसंचारण में जाता है। मनुष्य का यह वीर्य वापस ले जाने तथा उसके शरीर में विसारितत होने पर उस व्यक्ति को निर्भीक, बलवान, साहसी तथा वीर बनाता है। यदि इसका अपव्यय किया गया तो यह उसको स्त्रैण, दुर्बल तथा कृशकलेवर, कामोत्तेजनशील तथा उसके शरीर के अंगों के कार्यव्यापार को विकृत तथा स्नायुतंत्र को शिथिल (दुर्बल) करता है तथा उसे मिर्गी (मृगी) एवं अन्य अनेक रोगों और शीघ्र मृत्यु का शिकार बना देता है। जननेन्द्रिय के व्यवहार की निवृत्ति से शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक बल में असाधारण वृद्धि होती है।”

परम धीर तथा अध्यवसयायी वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला है कि जब कभी भी रेतःस्राव को सुरक्षित रखा जाता तथा इस प्रकार शरीर में उसका पुनरवशोषण किया जाता है तो वह रक्त को समृद्ध तथा मस्तिष्क को बलवान बनाता है। डॉ. डिओ लुई कहते हैं- “शारीरिक बल, मानसिक, ओज तथा बौद्धिक कुशाग्रता के लिए इस वीर्य का संरक्षण परम आवश्यक है।”

एक अन्य लेखक डॉ. ई.पी.मिलर लिखते हैं- “शुक्रस्राव का स्वैच्छिक अथवा अनैच्छिक अपव्यय जीवनशक्ति का प्रत्यक्ष अपव्यय है। यह प्रायः सभी स्वीकार करते हैं कि रक्त के सर्वोत्तम तत्त्व शुक्रस्राव की संरचना में प्रवेश कर जाते हैं। यदि यह निष्कर्ष ठीक है तो इसका अर्थ यह हुआ कि व्यक्ति के कल्याण के लिए जीवन में ब्रह्मचर्य परम आवश्यक है।”

पश्चिम के प्रख्यात चिकित्सक कहते हैं कि वीर्यक्षय से, विशेषकर तरूणावस्था में वीर्यक्षय से विविध प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। वे हैं, शरीर में व्रण, चेहरे पर मुँहासे अथवा विस्फोट, नेत्रों के चतुर्दिक, नीली रेखाएँ, दाढ़ी का अभाव, धँसे हुए नेत्र, रक्तक्षीणता से पीला चेहरा, स्मतिनाश, दृष्टि की क्षीणता, मूत्र के साथ वीर्यस्खलन, अण्डकोश की वृद्धि, अण्डकोशों में पीड़ा, दुर्बलता, निद्रालुता, आलस्य, उदासी, हृदय-कम्प, श्वासावरोध या कष्टश्वास, यक्ष्मा, पृष्ठशूल, कटिवात, शिरोवेदना, संधि-पीड़ा, दुर्बल युवक, निद्रा में मूत्र निकल जाना, मानसिक अस्थिरता, विचारशक्ति का अभाव, दुःस्वप्न, स्वप्न दोष तथा मानसिक अशांति।

उपरोक्त रोगों को मिटाने का एकमात्र इलाज है ब्रह्मचर्य, यौवनतत्त्व की सुरक्षा। दवाइयों से या अन्य उपचारों से ये रोग स्थायी रूप से ठीक नहीं होते।

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