ब्रह्मचर्य व्रत सभी व्रतों से श्रेष्ठ है। मन को साधने से ही ब्रह्मचर्य व्रत का पालन हो सकता है। यदि मन को वश में रखा जाए तो व्यक्ति गृहस्थ जीवन में भी साधना कर सकता है। यह बात आचार्य महाश्रमण ने समदड़ी प्रवास के तीसरे दिन सोमवार को उपस्थित श्रावकों को प्रवचन के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि काम धर्म सम्मत होना चाहिए। काम पर अंकुश रखने से शरीर पृष्ठ होने के साथ-साथ मन भी पवित्र होता है। पति-पत्नी दोनों को काम, धर्म सम्मत करना चाहिए। ब्रह्मचर्य व्रतधारी व्यक्ति को देव-दानव व गंधर्व प्रणाम करते है। उन्होंने काम पर व्याख्या करते हुए कहा कि जीवन में काम व अर्थ पर संयम होना चाहिए। धर्म व शास्त्रों के अनुसार किया गया काम कल्याणकारी है। व्यक्ति को काम को वासना की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। आचार्य ने कहा कि गृहस्थ जीवन में भी काम पर अंकुश रखकर जीवन को साधना के शिखर तक ले जा सकता है।