► परिचय
अतएव ब्रह्मचर्य का संपूर्ण नैष्ठिक पालन करने वाली व्यक्ति को शास्त्रकारों ने विजातिय व्यक्ति का तनिक भी स्पर्श करने की या उसके सामने स्थिर दृष्टि से देखने की, उसके साथ बहुत लंबे समय तक बातचीत की या मन से उसका विचार करने की मनाई की है|
इन नव नियमों का बडी कडाई से जो पालन करते है उनके लिये शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से ब्रह्मचर्य का पालन करना आज के युग में भी संभव है और उससे विभिन्न प्रकार की लब्धि व सिद्धि प्राप्त होती हैं|
► स्वामीनारायण धर्म
स्वामीनारायण धर्म के श्री निस्कुलानंदजी ने नौ ब्रह्मचर्य के नियमों पर एक कविता बनाई है| यह ब्रह्मचर्य के महत्व को दर्शाता है|
► प्राचीन जैन शास्त्र तत्त्वार्थ
प्राचीन जैन शास्त्र तत्त्वार्थ सूत्र के चौथे अध्याय में दी गई दिव्य प्राणी की यौन सुख का वर्णन इस कथन का समर्थन करता है|
► परमेश्वर जो सौधर्म
पहले स्वर्ग और ईशान-दूसरे स्वर्ग में रहते हैं, वे अपने यौन आग्रह को वास्तविक संभोग से संतुष्ट करते हैं| देवताओं के और अधिक प्रकारों में से, कुछ देवताओं स्पर्श के माध्यम से यौन सुख का आनंद लेते हैं, कुछ केवल आँखों के माध्यम से, कुछ शब्दों के माध्यम से और कुछ केवल उन्हें मस्तिष्क के माध्यम से आनंद लेते हैं|
► रात्रि के भ्रमचर्यपालन
एक रात्रि के भ्रमचर्यपालन से जो गति प्राप्त होती हैं उसकी प्राप्ति हजार यज्ञ करने से भी सम्भव नही हैं|
► संक्रांति अमावास्य
जो मनुष्य ग्रहण, संक्रांति, अमावास्य एवं चतुर्दशी के अवसर पर तैलसे अभ्यंग (शारीरमर्दन) एवं स्त्रीसेवन करता हैं वह चांडालयोनी में जन्म लेता हैं|