renunciation ceremony

संन्यास संस्कार – ब्रह्मचर्य विज्ञान | Renunciation ceremony – brahmacharya vigyan

 

संन्यास = सं + न्यास। अर्थात् अब तक लगाव का बोझ जो उसके कन्धों पर है, उसे उठाकर अलग धर देना। मोहादि आवरण पक्षपात छोड़ के विरक्त होकर सब पृथ्वी में परोपकारार्थ विचरना।संन्यास ग्रहण के प्रथम प्रकार को क्रम संन्यास कहते हैं। जिसमें क्रमश: ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ होके संन्यास लिया जाता है। द्वितीय प्रकार में गृहस्थ या वानप्रस्थ में जिस दिन वैराग्य प्राप्त होवे उसी दिन, चाहे आश्रम काल पूरा भी न हुआ हो, दृढ़ वैराग्य और यथावत ज्ञान प्राप्त करके संन्यास लेवे। तृतीय प्रकार में ब्रह्मचर्य से सीधा संन्यास लिया जाता है। जिसमें पूर्ण अखण्डित ब्रह्मचर्य, सच्चा वैराग्य और पूर्ण ज्ञान-विज्ञान को प्राप्त कर विषयासक्ति से उपराम होकर, पक्षपात रहित होकर सबके उपकार करने की इच्छा का होना आवष्यक समझा गया है। संन्यास ग्रहण की पात्रता में एषणात्रय- लोकैषणा, वित्तैषणा, पुत्रैषणा का सवर्था त्याग आवश्यक माना जाता है।संन्यासी के कर्त्तव्य:- न तो अपने जीवन में आनन्द और न ही अपने मृत्यु में दुःख माने, किन्तु जैसे क्षुद्र भृत्य अपने स्वामी की आज्ञा की बाट देखता है वैसे ही काल और मृत्यु की प्रतीक्षा करें। संन्यासी इस संसार में आत्मनिष्ठा में स्थित रहे, सर्वथा अपेक्षारहित उसका जीवन हो। मद्य-मांसादि का त्याग करे। आत्मा के सहाय से सुखार्थी होकर सदा सत्योपदेश करता ही विचरे। सब सिर के बाल, दाढ़ी-मूंछ और नखों को समय-समय पर छेदन कराता रहे। पात्री, दण्डी और कुसुम से रंगे वस्त्रों को धारण करे। प्राणीमात्र को पीड़ा न देता हुआ दृढ़ात्मा होकर नित्य विचरे। इन्द्रियों का बुरे कामों से निरोध, राग-द्वेष का क्षय और निर्वैरता से प्रणियों का कल्याण करता फिरे। यदि मुख वा अज्ञानी संन्यासी की निन्दा वा अपमान भी करे तथापि वह धर्म का ही आचरण करे। संन्यासी सम्मान से विष के तुल्य डरे और अमृत के समान अपमान की चाहना करे। यम-नियमों का मनसा-वाचा-कर्मणा पालन अवश्य करे।

Tags: , , , , , , , , , , , , , ,

Leave a Comment

Scroll to Top