हस्त रेखाएं और ज्योतिष हरबू लाल अग्रवाल ज्योतिषीय गणनाएं जटिल हैं और हस्तरेखाएं विधाता द्वारा बनायी गयी प्रत्येक व्यक्ति की जीवन की सरल रूप रेखा है तथापि जो ज्योतिष में है वही हाथ की रेखाओं में भी अंकित है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि समय के साथ आने वाले परिवर्तन हस्तरेखाओं में अंकित होते रहते हैं जिन्हें थोड़े ही अध्ययन से जाना जा सकता है। आइए, जानें कैसा है यह संबंध। हस्त रेखा शास्त्र द्रारत में आदि काल से प्रचलित है। नारद जी इसके बहुत बडे़ विशेषज्ञ थे। रामायण में वर्णन आता है कि राजा शीलनिधि ने अपनी पु़त्री विश्वमोहिनी का हाथ नारद जी को दिखाया। आनि दिखाई नारदहिं द्रूपति राज कुमारि, कहहु नाथ गुन दोष सब एह के हृदय विचारि। जो एहि बरइ अमर सोइ होइ, समर द्रूमि तेहि जीत न कोई। यानी, इसका पति अमर और अजेय होगा। इसी प्रकार हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का हाथ नारद जी को दिखाया, तो उत्तर मिला कि इसके पति वैरागी, द्रिक्षा मांगने वाले, अनिकेतन, सर्पो की माला धारण करने वाले होंगे। ये सब गुण द्रगवान शंकर में हैं। ज्योतिष के नव ग्रह और रेखा शास्त्र के पर्वत, ज्योतिष के घर या द्राव और हस्त की रेखाएं आपस में संबंधित हैं। हथेली में तर्जनी के नीचे बृहस्पति का पर्वत है, मध्यमा के नीचे शनि का पर्वत, अनामिका के नीचे सर्यू का पर्वत, कनिष्ठिका के नीचे बुध का पर्वत तथा अंगूठे से मिला हुआ, हथेली के ऊपरी द्राग में शुक्र का पर्वत है। मंगल के दो पर्वत हैं- ऊपर का तथा नीचे वाला। मंगल (ऊपर वाला) का पर्वत अंगठूे के नीच,े बृहस्पति पर्वत से लगा हअु ा तथा मगं ल (नीचे वाला ) पर्वत बुध पर्वत से लगा हुआ, मंगल (ऊपर वाला) के ठीक सामने हथेली के निचले द्राग में है। ऐसा माना जाता है कि ऊपर वाले में मेष राशि और नीचे वाले में वृश्चिक राशि के स्थान हैं। चंद्रमा का पर्वत हथेली के बायीं तरफ, शुक्र पर्वत की दूसरी ओर, मणिबंध से लगा हुआ है। मंगल (नीचे वाले) के ऊपर की ओर, हृदय रेखा से मिला हुआ, हथेली के बीच में राहु (डै्रगन हेड) है। शुक्र पर्वत के नीचे, हथेली के बीच में, द्राग्य रेखा के उद्गम के पास, केतु (डै्रगन टेल ) होता है। का पर्वत है, मध्यमा के नीचे शनि का पर्वत, अनामिका के नीचे सर्यू का पर्वत, कनिष्ठिका के नीचे बुध का पर्वत तथा अंगूठे से मिला हुआ, हथेली के ऊपरी द्राग में शुक्र का पर्वत है। मंगल के दो पर्वत हैं- ऊपर का तथा नीचे वाला। मंगल (ऊपर वाला) का पर्वत अंगठूे के नीच,े बृहस्पति पर्वत से लगा हअु ा तथा मगं ल (नीचे वाला ) पर्वत बुध पर्वत से लगा हुआ, मंगल (ऊपर वाला) के ठीक सामने हथेली के निचले द्राग में है। ऐसा माना जाता है कि ऊपर वाले में मेष राशि और नीचे वाले में वृश्चिक राशि के स्थान हैं। चंद्रमा का पर्वत हथेली के बायीं तरफ, शुक्र पर्वत की दूसरी ओर, मणिबंध से लगा हुआ है। मंगल (नीचे वाले) के ऊपर की ओर, हृदय रेखा से मिला हुआ, हथेली के बीच में राहु (डै्रगन हेड) है। शुक्र पर्वत के नीचे, हथेली के बीच में, द्राग्य रेखा के उद्गम के पास, केतु (डै्रगन टेल ) होता है। जीवन रेखा बृहस्पति पर्वत के पास से निकल कर शुक्र पर्वत के नीचे से होती हुई, मणिबंध तक जाती है। इसी रखाो के ऊपरी द्राग में मगंल पर्वत (ऊपर वाले) के निचले द्राग में, लंबाई में कम, समानातं र मगंल रखाो हातेी है इन दानोें रेखाओं से अष्टम द्राव, यानी उम्र का पता लगता हैं। यह रेखा सूर्य पर्वत पर होती है तथा ज्यादातर हृदय रेखा तक जाती है। इससे परीक्षाओं में सफलता का बोध होता है; यानी पंचम स्थान का ज्ञान होता है। यह रेखा जीवन रेखा से निकल कर उसके निचले भाग से, मस्तिष्क तथा हृदय रखाोओं को काटती हुई, शनि पर्वत पर, मध्यमा तक जाती है। यही ज्योतिष में नवम द्राव है। यह रेखा बुध पर्वत पर हाते ी है तथा हृदय रेखा तक जाती हैं। इससे कुंडली में प्रथम द्राव को जानना चाहिए। यह रेखा बुध पर्वत पर आरै स्वास्थ्य रखे ाा से आड़ी, हथेली के निचले द्राग में है इससे कुंडली के सप्तम द्राव का पता लगता है। यह शत्रुओं तथा बीमारियों से होने वाली तकलीफों का द्योतक है। यही कुंडली का छठा स्थान है। जीवन रेखा, हृदय रेखा तथा मस्तिष्क रेखाओं के बीच में जो त्रिकोण बनते हैं, उनसे मकानों का पता लगता है। यही कुंडली में चौथा स्थान है। यह जीवन रेखा के अंत में, ऊपरी तरफ, मणिबंध के करीब से निकल कर, मछली की तरह होती है। इससे धन का पता लगता है। यह दूसरा स्थान है। शुक्र पर्वत पर जीवन रेखा के ऊपरी द्रागमे ं जितनी आड़ी रेखाएं हैं, उनसे भाई-बहनो ं का पता लगता है यह कुंडली का तीसरा स्थान है। चंद्र पर्वत के नीचे, हथेली के बायें द्राग में आड़ी रेखाएं ह,ैं जिनसे संतान का पता लगता है।