भारतवर्ष में विवाह के लिए कुंडली मिलान करवाते समय आज भी बहुत से ज्योतिषि गुण मिलान की विधि का प्रयोग करते हैं तथा इसी विधि के अनुसार यह तय करते हैं कि दोनों कुंडलियां आपस में मेल खातीं हैं या नहीं। गुण मिलान की इस विधि की सत्यता के उपर समय-समय पर प्रश्नचिन्ह लगते रहे हैं तथा इस विधि के साथ कई तरह की भ्रांतियां जुड़ गईं हैं। इस लेख में हम इनमें से कुछ भ्रांतियों के बारे में चर्चा करेंगे तथा इनकी वास्तविकता को व्यवहारिक दृष्टि से परखेंगे भी। किन्तु सबसे पहले आइए यह देख लें कि गुण मिलान की यह विधि असल में है क्या तथा यह कैसे काम करती है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष तथा राशी विशेष में स्थिति के आधार पर निम्नलिखित अष्टकूटों का मिलान किया जाता है।
1. वर्ण
2. वश्य
3. तारा
4. योनि
5. ग्रह-मैत्री
6. गण
7. भकूट
8. नाड़ी
उपरोक्त अष्टकूटों को क्रमश: एक से आठ तक गुण प्रदान किये जाते हैं, जैसे कि वर्ण को एक, नाड़ी को आठ तथा बाकी सबको इनके बीच में दो से सात गुण प्रदान किये जाते हैं। इन गुणों का कुल जोड़ 36 बनता है तथा इन्हीं 36 गुणों के आधार पर कुंडलियों का मिलान निश्चित किया जाता है। 36 में से जितने अधिक गुण मिलें, उतना ही अच्छा कुंडलियों का मिलान माना जाता है। 36 गुण मिलने पर उत्तम, 36 से 30 तक बहुत बढ़िया, 30 से 25 तक बढ़िया तथा 25 से 20 तक सामान्य मिलान माना जाता है। 20 से कम गुण मिलने पर कुंडलियों का मिलान शुभ नहीं माना जाता है।
गुण मिलान में प्रयोग किए जाने वाले इन अष्टकूटों में से ग्रह-मैत्री, गण, भकूट तथा नाड़ी को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है तथा उसी के अनुसार इन्हें सबसे अधिक अंक भी दिए जाते हैं। इन चार कूटों में से कोई एक अथवा अधिक मेल न खाने की स्थिति में बहुत से ज्योतिषि कुंडली धारकों का परस्पर विवाह न करने की सलाह देते हैं तथा विवाह करने की स्थिति में विभिन्न प्रकार की विपत्तियों का सामना करने की चेतावनी भी देते हैं जिसके कारण अधिकतर लोग ऐसा विवाह करने से डर जाते हैं। किन्तु कुंडली मिलान में उपरोक्त कूटों में से एक या एक से अधिक के न मिलने पर बताए जाने वाली समस्याएं तथा विपत्तियां व्यवाहारिक रुप में देखने में नहीं आतीं तथा यह बहुत से वैदिक ज्योतिषियों का यह मत भ्रांति ही साबित होता है। अधिकतर लोग यह बात नहीं जानते कि कुंडली मिलान के लिए प्रस्तुत लगभग 80% से अधिक कुंडलियों में उपरोक्त चार कूटों में से एक या एक से अधिक नहीं मिलते तथा जिसके कारण ऐसी कुंडलियों के मिलान में इन कूटों के द्वारा बनने वाला दोष माना जाता है। इस प्रकार अगर यह मान लिया जाए कि कोई भी व्यक्ति अपने विवाह के लिए कुंडली मिलान नहीं करवाता है तो 80% से अधिक लोगों की शादी गण, भकूट अथवा नाड़ी दोष के साथ ही होगी जिसके कारण ऐसे कुंडली धारकों की शादी में तरह-तरह की मुसीबतें तथा समस्याएं आएंगीं जो कि इन दोषों के साथ जोड़ीं जातीं हैं। और जैसा कि हम जानते हैं भारत को छोड़ कर अधिकतर देशों में विवाह के लिए कुंडलियों का मिलान नहीं किया जाता तथा इन देशों में भी वास्तविकता में इतने अधिक लोगों के वैवाहिक जीवन में इन दोषों के कारण बताईं जाने वालीं मुसीबतें नहीं आती, इसलिए गुण मिलान से बनने वाले दोषों के साथ जुड़ीं खराब बातें भ्रांतियां ही कही जा सकतीं हैं।
अष्टकूटों में सबसे अधिक महत्व दिये जाने वाले दो कूट नाड़ी तथा भकूट के साथ कई भारतीय ज्योतिषि सबसे अधिक भयावह बातें जोड़ते हैं तथा इन दोषों में से किसी एक दोष या दोनों के ही उपस्थित होने पर कुंडली धारकों के वैवाहिक जीवन में भयंकर मुसीबतों का आगमन बताया जाता है जिनमें संतान न पैदा होना, अति दरिद्रतापूर्वक जीवन व्यतीत करना तथा पति-पत्नि में से किसी एक या दोनों की ही विवाह के शीघ्र पश्चात मृत्यु हो जाना भी बताया जाता है। यहां पर पाठकों का यह जान लेना आवश्यक है कि कुंडली मिलान के लिए प्रस्तुत लगभग 30% कुंडलियों में नाड़ी दोष बनता है तथा लगभग 40% कुंडलियों में भकूट दोष बनता है तथा इस हिसाब से लगभग 60% कुंडलियों में इन दोनों में से कोई एक या दोनों ही दोष बनते हैं और 60% फिर से अपने आप में बहुत अधिक है तथा व्यवहारिक रूप से इतने अधिक लोगों के वैवाहिक जीवन में उपर बताईं गईं भारी विपत्तियां नहीं आतीं हैं जिसके कारण यह मान लेना होगा कि नाड़ी दोष तथा भकूट दोष के साथ जुड़ीं खराब बातें भी अपने आप में भ्रांतियां हैं तथा इनमें अधिक सत्यता नहीं है। इसलिए कुंडली मिलान के समय गुण मिलान की विधि को अधिक महत्व नहीं देना चाहिए तथा कुंडली मिलान के लिए दोनों कुंडलियों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना चाहिए न कि दोनों कुंडलियों में केवल चन्द्रमा की स्थिति का।