महा भारत में जब पांडव अज्ञात वास बनवास काट रहे थे तो एक वार भिह्न्ला बने अर्जुन को अपने गुरु जनों और कोर्व सेना का सहमना करना पड़ा अर्जुन नहीं चाहते थे की उन्हें कोई पहचाने इस लिए गुरु जनों का सहमना नहीं करना चाहते थे !इस लिए उन्हों ने समोहन बाण का इस्तेमाल कर सभी को सुला दिया और अपने भेत को भी छुपा लिया कालान्तर ऐसी विधाए लुप्त होती गई जो गुरु कुल में सस्त्रो की शिक्षा देते वक़्त पर्दान की जाती थी जिन में अस्त्र शास्त्र अदि विधा भी दी जाती थी !सद्गुरु निखिल जी ने सभी विधायो को पुनर जीवत कर इस धराः पे स्थापित की उन्हों ने इन विधायो का ही नहीं बल्कि पुरे जीवन का मर्म सम्झ्याया जिसे प्राप्त करना हर साधक का लक्ष्य बन गया !कुश ऐसे दुर्लव प्रयोग व साधनाए होती है जिन्हें सहज प्राप्त करना संभव नहीं होता !पर अगर जीवन के कठोर धरातल पे आगे बढना है तो इन साधनायो को जीवन में महत्वपूर्ण स्थान देना ही होगा !आज गुरु जी को सिदाश्र्म गये १३ साल हो गये और आज फिर उन विधायो को लुप्त होने से बचाने की कोशिश की जरूरत है १इस लिए सभी से कहता हू सिर्फ दीक्षा पे ही डिपेंड ना होए आगे बड़ कर साधनायो को अपनाये जो गुरु जी ने हीरक खंडो से भी जयादा मूल्यवान मोती लुटाये है उन्हें अपने जीवन में धारण करे तभी गुरु जी का सपना पूरा कर पयोगे और सिदाश्र्म से हर शिष्य के कार्य को सद्गुरु जी गति दे रहे है यह बात हमेशा अपने येहन में रखे !अपनी सोच को बदले और दुसरो के लिए आदर्श साबित हो नहीं तो आने वाली पीडीए दिर्कारे गी !के आपने उन के लिए क्या किया हमारे गुरु जी हम सभी को साधना की बहुत वडी विरासत दे कर गये फिर क्यों नहीं उसे अपना रहे !इस के लिए साधक का भाव रखते हुए अपने और अपने माहोल को बदलने की कोशिश करे !
जहाँ बात समोहन की हो तो श्री कृष्ण जी का चित्रण अपने आप हो जाता है और सिर शरधा से अपने आप झुक जाता है और जीवन में प्रेम की लहर दौड़ जाती है शरीर में रोमाच पैदा होने लगता है !हवा से संगीत तरंगे प्रवाहित होने लगती है !सारा वातावर्ण एक महक से भर उठता है !बदलो की गडगडाहट से मेघ संगीत लहरी वजने लगती है !यह सभी समोहन तो है जो प्रकिरती हमेशा करती है !और आप स्मोहत होते चले जाते है !दृश्य आप को अपनी और आकर्षित करते है !प्रकिरती का यही गुण अपनाकर साधक शरेष्ट बन जाता है और प्रकिरती से एकाकार हो जाता है तो जीवन में सुगंध वियाप्त होती ही है !जब तक प्रकिरती तत्व आप में नहीं आता कैसे एक अप्सरा और य्क्ष्नी को बुला पयोगे संभव ही नहीं है !कैसे किनरी को अपने बस में कर पयोगे इस तत्व के बिना नहीं हो सकता क्यों के एक प्रकिरती ही है जो सभ को अपनी और आकर्षित करती है !जहाँ सन्यासी प्रकिरती को पूरी तरह अपना लेते है !तभी तो शरेष्ट बन पाते है और प्रकिरती उन्हें स्व पालने लगती है !अगर साधक बन कर इस तथ्य को अपनायो गे तो सहज ही समझ जायोगे की प्रकिरती क्या चाहती है आपसे आप त्राटक करते हो जा कोई साधना उस में प्रकिरती को ही निहारते हो उसी प्रकिरती में व्याप्त सुगंध आप की आँखों के रस्ते आप में भी व्याप्त हो जाती है !प्रकिरती को निहारना ही अभियाश है और अपना लेना समोहन और प्रेम का संगीत जा प्रकिरती संगीत सुनना किरिया है उसे समझ लेना समोहन है !अब सवाल यह है ऐसा क्या करे के प्रकिरती का संगीत समझ य़ा जाये और समोहन की किरिया अपने आप संपन हो जाये जैसे प्रकिरती में स्व ही होती है !उच्च कोटि के फकीरों और संतो में एक कहावत कही जाती है “कुदरत नार फकीरी की “अर्थात कुदरत जा प्रकिरती को अपना लेना ही जीवन की पूर्णता है !और जही श्री कृष्ण जी का दिव्य सन्देश है !क्यों के वोह वार वार कहते है अर्जुन तुम मुझे पहचानो मैं नदियों में गंगा नदी हू दरखतो में पीपल हू अदि अदि ऐसे बहुत उधारन दे कर अर्जुन को समझाया !क्यों के श्री कृष्ण पूरण समोहन का रूप थे और प्रकिरती को अपना चुके थे तभी जरे जरे में व्याप्त थे !इस लिए कृष्ण नाम से वडा कोई समोहन मंत्र नहीं है !जहाँ एक समोहन बाण साधना दे रहा हू जो गोपनीय तो है ही और अपने आप में पूरण समोहन लिए हुए है मेरी स्व की परखी हुयी है !
साधना विधि —
१ इसे अष्टमी जा श्री कृष्ण जम्नाष्ट्मीके दिन और बंसंत पंचमी से शुरू किया जा सकता है यह २१ दिन की साधना है !
२ इस में जाप वज्यंती माला से करे !
३ मन्त्र जाप २१ माला करना है !
४ जप के वक़्त सुध घी की ज्योत लगा दे !
५ गुरु पूजन गणेश पूजन और श्री कृष्ण पूजन अनिवार्य है !
६ भोग के लिए दूध का बना परशाद मिश्री में छोटी इलाची मिला के पास रख ले !
७ हो सके तो षोडश परकार से पूजन करे नहीं तो मिलत उपचार जैसा आपको आता है कर ले !
७ वस्त्र पीले और आसन पीला !
८ दिशा उतर रहेगी !
९ साधना के अंत में पलाश की लकड़ी ड़ाल कर उस में घी से दस्मांश हवन करना है !ऐसा करने से साधना सिद्ध हो जाती है और आपकी आँखों में समोहन छा जाता है ! इस का प्रयोग भलाई के कार्यो में लगाये यह अमोघ शक्ति है !
मन्त्र—-|| ॐ कलीम कृष्णाय समोहन बाण साध्य हुं फट ||