मनुष्य अपने जीवन के विभिन्न समय पर किसी ना किसी साध्य या असाध्य रोग से ग्रस्त होता हैं।
उचित उपचार से ज्यादातर साध्य रोगो से तो मुक्ति मिल जाती हैं, लेकिन कभी-कभी साध्य रोग होकर भी असाध्या होजाते हैं, या कोइ असाध्य रोग से ग्रसित होजाते हैं। हजारो लाखो रुपये खर्च करने पर भी अधिक लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। डॉक्टर द्वारा दिजाने वाली दवाईया अल्प समय के लिये कारगर साबित होती हैं, एसि स्थिती में लाभा प्राप्ति हेरु व्यक्ति एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर के चक्कर लगाने को बाध्य हो जाता हैं।
भारतीय ऋषीयोने अपने योग साधना के प्रताप से रोग शांति हेतु विभिन्न यंत्र, मंत्र एवं तंत्र उल्लेख अपने ग्रंथो में कर मानव जीवन को लाभ प्रदान करने का सार्थक प्रयास हजारो वर्ष पूर्व किया था।
बुद्धिजीवो के मत से जो व्यक्ति जीवनभर अपनी दिनचर्या पर नियम, संयम रख कर आहार ग्रहण करता हैं, एसे व्यक्ति को विभिन्न रोग से ग्रसित होने की संभावना कम होती हैं। लेकिन आज के युग में एसे व्यक्ति भी भयंकर रोग से ग्रस्त होते दिख जाते हैं।
क्योकि समग्र संसार काल के अधीन हैं। एवं मृत्यु निश्चित हैं जिसे विधाता के अलावा और कोई टाल नहीं सकता, लेकिन रोग होने कि स्थिती में व्यक्ति रोग दूर करने का प्रयास तो अवश्य कर सकता हैं।
इस लिये यंत्र मंत्र एवं तंत्र के कुशल जानकार द्वारा योग्य मार्गदर्शन लेकर व्यक्ति रोगो से मुक्ति पाने का या उसके प्रभावो को कम करने का प्रयास भी अवश्य कर सकता हैं।
ज्योतिष विद्या के कुशल जानकर काल पुरुषकी गणना कर अनेक रोगो के रहस्य को उजागर कर सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से रोग के मू्लको पकडने मे सहयोग मिलता हैं, जहा आधुनिक चिकित्सा शास्त्र अक्षम होजाता हैं वहा ज्योतिष शास्त्र द्वारा रोग के मूल को पकड कर उसका निदान करना लाभदायक एवं उपायोगी सिद्ध होता हैं।
हर व्यक्ति में लाल रंगकी कोशिकाए पाइ जाती हैं, जिसका विकास क्रम बद्ध तरीके से होता रहता हैं। जब इन कोशिकाओ के क्रम में परिवर्तन होता है या विखंडिन होता हैं तब व्यक्ति के शरीर में स्वास्थ्य संबंधी विकारो उत्पन्न होते हैं। एवं इन कोशिकाओ का संबंध नव ग्रहो के साथ होता हैं। जिस्से रोगो के होने के कारणा व्यक्तिके जन्मांग से दशा-महादशा एवं ग्रहो कि गोचर में स्थिती से प्राप्त होता हैं।
सर्व रोग निवारण कवच एवं महामृत्युंजय यंत्र के माध्यम से व्यक्ति के जन्मांग में स्थित कमजोर एवं पीडित ग्रहो के अशुभ प्रभाव को कम करने का कार्य सरलता पूर्वक किया जासकता हैं।
जेसे व्यक्ति को ब्रह्मांड कि उर्जा एवं पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल प्रभावीत कर्ता हैं ठिक उसी प्रकार कवच एवं यंत्र के माध्यम से ब्रह्मांड कि उर्जा के सकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति को सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती हैं जिस्से रोग के प्रभाव को कम कर रोग मुक्त करने हेतु सहायता मिलती हैं।
रोग निवारण हेतु महामृत्युंजय मंत्र एवं यंत्र का बडा महत्व हैं। जिस्से हिन्दू संस्कृति का प्रायः हर व्यक्ति परिचित हैं।
कवच के लाभ :
एसा शास्त्रोक्त वचन हैं जिस घर में महामृत्युंजय यंत्र स्थापित होता हैं वहा निवास कर्ता हो नाना प्रकार कि आधि-व्याधि-उपाधि से रक्षा होती हैं।
पूर्ण प्राण प्रतिष्ठित एवं पूर्ण चैतन्य युक्त सर्व रोग निवारण कवच किसी भी उम्र एवं जाति धर्म के लोग चाहे स्त्री हो या पुरुष धारण कर सकते हैं।
जन्मांगमें अनेक प्रकारके खराब योगो और खराब ग्रहो कि प्रतिकूलता से रोग उतपन्न होते हैं। कुछ रोग संक्रमण से होते हैं एवं कुछ रोग खान-पान कि अनियमितता और अशुद्धतासे उत्पन्न होते हैं। कवच एवं यंत्र द्वारा एसे अनेक प्रकार के खराब योगो को नष्ट कर, स्वास्थ्य लाभ और शारीरिक रक्षण प्राप्त करने हेतु सर्व रोगनाशक कवच एवं यंत्र सर्व उपयोगी होता हैं।
आज के भौतिकता वादी आधुनिक युगमे अनेक एसे रोग होते हैं, जिसका उपचार ओपरेशन और दवासे भी कठिन हो जाता हैं। कुछ रोग एसे होते हैं जिसे बताने में लोग हिचकिचाते हैं शरम अनुभव करते हैं एसे रोगो को रोकने हेतु एवं उसके उपचार हेतु सर्व रोगनाशक कवच एवं यंत्र लाभादायि सिद्ध होता हैं।
प्रत्येक व्यक्ति कि जेसे-जेसे आयु बढती हैं वैसे-वसै उसके शरीर कि ऊर्जा होती जाती हैं। जिसके साथ अनेक प्रकार के विकार पैदा होने लगते हैं एसी स्थिती में भी उपचार हेतु सर्व रोगनाशक कवच एवं यंत्र फलप्रद होता हैं।
जिस घर में पिता-पुत्र, माता-पुत्र, माता-पुत्री, या दो भाई एक हि नक्षत्रमे जन्म लेते हैं, तब उसकी माता के लिये अधिक कष्टदायक स्थिती होती हैं। उपचार हेतु महामृत्युंजय यंत्र फलप्रद होता हैं।
जिस व्यक्ति का जन्म परिधि योगमे होता हैं उन्हे होने वाले मृत्यु तुल्य कष्ट एवं होने वाले रोग, चिंता में उपचार हेतु सर्व रोगनाशक कवच एवं यंत्र शुभ फलप्रद होता हैं।