भयभीत होने की आवश्यकता नहीं यह मृत्यु योग वह नहीं है, यह तो एक मुहूर्त का योग है। इस योग में कोई शुभ कार्य शुरू नहीं किया जाता। इस मुहूर्त में शुरू किया कार्य पूर्ण नहीं होता तथा मृत्यु तुल्य कष्ट देता है।यह योग दो प्रकार का होता है। जो नक्षत्र एवं वार के संयोग से बनता है। उसे नक्षत्र वारादि मृत्यु योग कहते है।रविवार के दिन अनुराधा, सोमवार को शमभिषा, बुधवार को अश्विनी, गुरुवार को मार्गशिर्ष, शुक्रवार को अश्लेषा, शनिवार को हस्त नक्षत्र हो तो नक्षत्र वारादि मृत्यु योग होता है।इसी प्रकार रविवार को प्रतिपदा, सोमवार ओर शुक्रवार को द्वितिया तिथि, बुधवार को तृतिया, गुरूवार को चतुर्थी तथा शनिवार को पूर्णिमा तिथि हो तो मृत्यु योग होता है।इस योग में किसी कार्य की शुरूआत करने से वह असफल होता है। उसके पूर्ण होने में सन्देह होता है, तथा वह मृत्यु के समान कष्ट प्रदान करता है।