ज्येष्ठ पुत्र पृथुश्रवा ने विरक्ति के कारण न तो विवाह किया और न ही अग्निपूजन किया। छोटे पुत्र ने भी प्रवृत्ति दोष (बडे़ भाई के अविवाहित रहने पर छोटे भाई के विवाह से उत्पन्न पाप या दुख) के कारण विवाह करना अस्वीकार कर दिया। यह देखकर पितृगणों ने कक्षीवान के उन दोनों पुत्रों को तीन ऋणों (देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण) से मुक्ति पाने के लिए विवाह करने का परामर्श दिया लेकिन उन्होंने विवाह करना अस्वीकार कर दिया। गांव रसीना के इस ऐतिहासिक तीर्थस्थल पर निर्मित विशाल व भव्य मंदिर के गर्भगृह में सीता-राम, गौरी-शंकर व लक्ष्मी नारायण की संगमरमर की भव्य प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है। मंदिर की उत्तर दिशा में करीब चार एकड़ भूमि में बने विशाल सरोवर में आस्थावश स्नान के लिए अनेक श्रद्धालु आते रहते हैं। यहां पर जन्माष्टमी को लगने वाले विशाल मेले में दूर-दूर से अनेक श्रद्धालु व साधु-संत पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां पर आकर पूजा-अर्चना करने व स्नान करने से देव ऋण, पितृ ऋण व ऋषि ऋण से मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि आज भी गांव रसीना का यह ऋणमोचन तीर्थ ऋणमुक्ति का प्रतीक बना हुआ है। इस ऋणमोचन तीर्थ पर निकली दो प्राच्यकालीन मूर्तियां इस तीर्थ के पौराणिकता का प्रमाण हैं जिन्हें कुरुक्षेत्र संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।
ऋण मुक्ति का प्रतीक ऋणमोचन तीर्थ – rnamukti ka prateek rana mochan teerth – कर्ज मुक्ति के टोटके