कभी-कभी हमारे रोमकूप बंद हो जाते हैं। ऐसे में हमारा शरीर किसी भी बाहरी क्रिया को ग्रहण करने में स्वयं को असमर्थ पाता है। उसे हवा, सर्दी और गर्मी की अनुभूति नहीं हो पाती। रोमकूपों के बंद होने के फलस्वरूप व्यक्ति के शरीर का भीतरी तापमान भीतर में ही समाहित रहता है और बाहरी वातावरण का उस पर प्रभाव नहीं पड़ता, जिससे उसके शरीर में पांच तत्वों का संतुलन बिगड़ने लगता है और शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ जाती है। यही आयरन रोमकूपों से न निकलने के कारण आँखों से निकलने की चेष्टा करता है, जिसके फलस्वरूप आँखों की निचली पलक फूल या सूज जाती है। बंद रोमकूपों को खोलने के लिये अनेकानेक विधियों से उतारा किया जाता है।
संसार की प्रत्येक वास्तु में आकर्षण शक्ति होती है अर्थात प्रत्येक वातावरण से स्वयं कुछ न कुछ ग्रहण करती है। आमतौर पर नजर उतारने के लिये उन्हयें वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, जिनी ग्रहण करने के क्षमता तीव्र होती है। उदहारण के लिये, किसी पात्र में सरसों का तेल भरकर उसे खुला छोड़ दें, तो पायेंगे कि वातावरण के साफ़ व स्वच्छ होने के बावजूद उस तेल पर अनेकानेक छोटे-छोटे कण चिपक जाते हैं। ये कण तेल की आकर्षण शक्ति से प्रभावित होकर चिपकते हैं।
तेल की तरह ही नीबू, लाल मिर्च, कपूर, फिटकरी, मोर के पंख, बूंदी के लड्डू तथा ऐसी अन्य अनेकानेक वस्तुओं की अपनी-अपनी आकर्षण शक्ति होती है, जिनका प्रयोग नजर उतारने में किया जाता है।
इस तरह उक्त तथ्य से स्पष्ट हो जात है कि नजर का अपना वैज्ञानिक आधार है।