उचित भोजन और नियमित व्यायाम पीलिया की चिकित्सा में महत्वपूर्ण हैं। लेकिन रोगी की स्थिति बेहद खराब हो तो पूर्ण विश्राम करना जरूरी है। पित्त वाहक नली में दबाव बढने और रूकावट उत्पन्न होने से हालत खराब हो जाती है। ऐसी गंभीर स्थिति में 5 दिवस का उपवास जरूरी है। उपवास के दौरान फलों का जूस पीते रहना चाहिये। संतरा, नींबू, नाशपती, अंगूर, गाजर, चुकंदर, गन्ने का रस पीना फायदेमंद होता है।
रोगी को रोजाना गरम पानी का एनीमा देना कर्तव्य है। इससे आंतों में स्थित विजातीय द्रव्य नियमित रूप से बाहर निकलते रहेंगे और परिणामत: आंतों के माध्यम से अवशोषित होकर खून में नहीं मिलेंगे।
5 दिवस के फलों के जूस के उपवास के बाद तीन दिन तक सिर्फ फल खाना चाहिये। उपवास करने के बाद निम्न उपचार प्रारंभ करें-
सुबह उठते ही एक गिलास गरम पानी में एक नींबू निचोडकर पियें।
नाश्ते में अंगूर, सेवफल पपीता, नाशपती तथा गेहूं का दलिया लें। दलिया की जगह एक रोटी खा सकते हैं।
मुख्य भोजन में उबली हुई पालक, मैथी, गाजर, दो गेहूं की चपाती और ऐक गिलास छाछ लें।
करीब दो बजे नारियल का पानी और सेवफल का जूस लेना चाहिये।
रात के भोजन में एक कप उबली सब्जी का सूप, गेहूं की दो चपाती, उबले आलू और उबली पत्तेदार सब्जी जैसे मेथी, पालक।
रात को सोते वक्त एक गिलास मलाई निकला दूध दो चम्मच शहद मिलाकर लें।
सभी वसायुक्त पदार्थ जैसे घी, तेल, मक्खन, मलाई कम से 15 दिन के लिये कम उपयोग न करें। इसके बाद थौडी मात्रा में मक्खन या जेतून का तैल उपयोग कर सकते हैं। प्रचुर मात्रा में हरी सब्जियों और फलों का जूस पीना चाहिेये। कच्चे सेवफल और नाशपती अति उपकारी फल हैं।
दालों का उपयोग बिल्कुल न करें क्योंकि दालों से आंतों में फुलाव और सकती है सडांध पैदा हो। लिवर के सेल्स की सुरक्षा की दॄष्टि से दिन में 3-4 बार निंबू का रस पानी में मिलाकर पीना चाहिये।
मूली के हरे पत्ते पीलिया में अति उपादेय है। पत्ते पीसकर रस निकालकर छानकर पीना उत्तम है। इससे भूख बढेगी और आंतें साफ होंगी।
टमाटर का रस पीलिया में लाभकारी है। रस में थोड़ा नमक और काली मिर्च मिलाकर पीयें। स्वास्थ्य सुधरने पर एक दो किलोमीटर घूमने जाएं और कुछ समय धूप में रहें। अब भोजन ऐसा होना चाहिये जिसमें पर्याप्त प्रोटीन, विटामिन सी, विटामिन ई और विटामिन बी काम्पलेक्स मौजूद हों। पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद भी भोजन के मामले में लापरवाही न बरतें।