किशोरियों के मन में तरह-तरह के भय रहते हैं। किसी को अपनी बड़ी एड़ी से भय लगता है, किसी को अपने वक्ष के अधिक उभार से। किसी की जांघें पतली होती है तो किसी की मछली-सी। यह सब न होने पर भी स्त्री के हृदय में शक बना रहता है। पता नहीं कौन-सी शारीरिक कमी दिख जाए।
नवयुवतियों के मन में एक अजीब भय रहता है कि वे शारीरिक रूप से अस्वाभाविक हैं। उदाहरणार्थ किसी को ऐसा लगता है कि नाभि ही वह स्थान है, जहां संभोग क्रिया की जाती है और चूंकि वह बंद है, इसलिए वह दुखी रहती है। किसी को लगता है कि वह उभयलिंगी है।
यदि किशोरियों में यह भय नहीं रहता तो वे सोचती हैं कि अब तक शरीर में जो अंग उपस्थित नहीं है वे हठात उपस्थित हो जाएंगे। क्या नया अंग ऊब व घृणा उत्पन्न करेगा। उदासीनता के भाव जाग्रत करेगा। क्या व्यंग्यात्मक शब्द कहे जाएंगे। उन्हें पुरुष के निर्णय को मानना हैा परीक्षा का समय आ गया है। इसलिए स्त्री के ऊपर प्रथम संभोग का बड़ा गहरा व दीर्घकालीन प्रभाव पड़ता है।