स्त्री अपने शारीरिक सौंदर्य पर तब तक दंभ नहीं करती, जब तक पुरुष अउसके दंभ को पुष्ट नहीं करता। अब भी उसका प्रेमी ही निर्णायक होता है। हर रूप में वह उसे उसका सच्चा रूप दिखा देता है। यद्यपि स्त्री को आईने में अपनी परछाई देखकर हर्ष होता है, वह मुग्ध हो जाती है, फिर भी उसे भय रहता है। पुरुष के निर्णय के प्रति वह शंकित रहती है। वह रोशनी बंद कर देना और बिस्तर में छिप जाना चाहती है। जब वह पुरुष के सम्मुख होती है, उसकी आंखें उसे देख रही होती है तब वह धोखा नहीं दे सकती, संघर्ष नहीं कर सकती।