भवन के दक्षिण-पूरब दिशा अर्थात् आग्नेयकोण में किचन यानी रसोईघर तथा पश्चिम दिशा में ‘डाइनिंग हाल’ अर्थात् भोजनकक्ष का निर्माण करना चाहिए। इससे एक ओर जहाँ स्वादिष्ट भोजन प्राप्त होता है, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक सदस्यों का मन-मस्तिष्क संतुलित रहता है और वे स्वस्थ बने रहते हैं तथा प्रगति करते हैं। इस संदर्भ में वास्तुविद्या विशारदों ने कहा भी है- “पाकशाला अग्निकोणे स्यात्सुस्वादुभोजनाप्तये” अर्थात् दक्षिण-पूर्व दिशा में रसोईघर बनाने से स्वादिष्ट भोजन प्राप्त होता है। मनमाने ढंग से रसोई घर जिस-तिस दिशा में निर्मित करा लेने से शारीरिक-मानसिक परेशानियों, आर्थिक संकटों एवं पारिवारिक कलह-क्लेशों का सामना करना पड़ता है।।
भोजनकक्ष का निर्माण – bhojan kaksh ka nirman – वास्तु और कक्ष दशा – vastu aur kaksha dasham