सामाजिक मान्यताओं एवं जीवनशैली में काफी तेजी से बदलाव होता जा रहा है। एक समय पिता को देवता के तुल्य मानकर पुत्र उनकी सेवा में अपना सबकुछ अर्पण करने के लिए तैयार रहता था। पिता भी अपने पुत्र को भक्त के समान ही प्रेम करते और सभी भाईयों के बीच समान भाव रखते थे। लेकिन आज बहुत से ऐसे लोग हैं जो पिता की सेवा में कम उनकी संपत्ति में अधिक रूचि रखते हैं। पिता की बातों की अवहेलना करते हैं। इसके अलावा अन्य कई पारिवारिक मुद्दों के कारण पिता-पुत्र के बीच स्नेह की कमी हो जाती है।
वास्तु विज्ञान के अनुसार प्राचीन काल में लोग घर बनवाते समय वास्तु संबंधी विषयों का अधिक ध्यान रखते थे। आधुनिक समय में लोग वास्तु के नियमों की अवहेलना करके घर का निर्माण करते हैं और घर की साज-सज्जा भी इस प्रकार करते हैं जिससे वास्तु दोष उत्पन्न होता है। इसका प्रभाव न सिर्फ आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य पर पड़ता है बल्कि इससे रिश्ते भी प्रभावित होते हैं।
वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार सूर्य पिता का कारक ग्रह होता है। सूर्योदय की दिशा पूरब होती है क्योंकि सूर्य पूरब से ही उदित होता है। जिस घर में पूर्व दिशा दोषपूर्ण होती है उस घर में पिता और पुत्र के संबंध में दूरियां आती हैं। पूरब दिशा में बड़े-बड़े वृक्ष, ऊंची दीवार एवं कटी हुई जमीन हो तो पूर्व दिशा दोषपूर्ण हो जाती है।
पिता पुत्र के मधुर संबंध के लिए उत्तर पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में शौचालय अथवा रसोई घर नहीं होना चाहिए। यह पिता एवं पुत्र दोनों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। ईशान कोण को घर के अन्य भागों से ऊंचा नहीं रखना चाहिए साथ ही इस भाग में भारी सामान रखने से बचना चाहिए।
उत्तर पूर्वी भागों में ज्वलनशील पदार्थ तथा गर्मी उत्पन्न करने वाले उपकरण नहीं रखने चाहिए इससे पुत्र का व्यवहार उग्र होता है और पिता की बातों को नहीं मानता है। ईशान कोण खंडित हो अथवा इस दिशा में कूड़ादान रखते हों तो इससे पिता और पुत्र के बीच वैमनस्य बढ़ता है और गंभीर विवाद हो सकता है। भूखंड उत्तर व दक्षिण में संकरा तथा पूर्व व पश्चिम में लंबा हो तो ऐसे भवन को सूर्यभेदी कहते हैं। ऐसे भवन में पिता-पुत्र साथ रहें तो एक दूसरे से अक्सर विवाद होते रहते हैं और रिश्तों में दूरियां बढ़ जाती हैं।
पिता पुत्र में मधुर संबंध के लिए आजमाएं ये वास्तु – pita putr mein madhur sambandh ke lie aajamaen ye vaastu – वास्तु और सकारात्मक ऊर्जा – vastu aur sakaratmak oorja