अक्सर लोग कहते हैं की जीवन का सबसे बड़ा सत्य है – मौत, अगर हाँ तो उसके बाद क्या? स्वर्ग और नर्क क्या हैं? इंसान मौक्ष की प्राप्ति कैसे करता है?
हिन्दू धर्म और विश्व के विभिन्न धर्मो और उनके महान प्राचीन ग्रंथो में जीवन के रहस्य और स्वर्ग जैसी बातो का वर्णन किया गया है जिसमे काफी बातें एकसमान हैं। इन ग्रंथो का सारा ज्ञान देवताओं द्वारा खुद दिया गया था।
पुनर्जन्म चक्र – इन ग्रंथों के मुताबिक नर्क यहीं है पृथ्वी पर। हम सब पुनर्जन्म के चक्र में फसे हुए हैं। हमें करोड़ों बार जन्म और मरण की पीड़ा से गुजरने के बाद इंसान का जन्म मिलता है जैसा की हिन्दू धर्म में भी वर्णित है। मतलब हमें हजारों सालों बाद मौक्ष का मौका मिलता है इंसानी जीवन के रूप में।
स्वर्ग, नर्क और मौक्ष – ये इंसानी जीवन हमें एक ऐसे मौके के रूप में मिलता है जिसमें हम इस पुनर्जन्म चक्र रुपी नर्क से मुक्ति(मौक्ष) पा सकें। अपने इंसानी जीवन में सफल होने पे हर मनुष्य स्वर्ग का हक़दार बनता है और इसी को हम मौक्ष भी कहते हैं, मतलब पुनर्जन्म चक्र से मुक्ति, अन्यथा मनुष्य को जन्म और मृत्यु की पीड़ा का सफर जारी रखना पड़ता है क्योंकि आत्मा तो अमर होती है।
मौक्ष की प्राप्ति – हमारे जीवन से तुलना की जाए तो आत्मा अनंत तक रहती है, मतलब जो व्यक्ति स्वर्ग में जाता है वो वहां अनंत तक रहता है। इसलिए अनंत तक आनंदमयी रूप से स्वर्ग में रहने के लिए किसी को भी अपने लालच और कामनाओं पे काबू करना आवश्यक है। इसका मतलब साफ़ है की स्वर्ग में जाने और मौक्ष की प्राप्ति के लिए वही व्यक्ति योग्य होगा जो अपने लालच और कामनाओं पर काबू पा ले और सुख-दुःख को एकसमान समझे।
इंसान की जिंदगी में इतने लक्ष्य होते हैं की वो कभी खुश ही नहीं रह पाता। ९०% तनाव और दुःख सिर्फ हमारे सोचने के तरीके और जीवनशैली पर निर्भर करता है। सिर्फ भारत में ही हर साल हज़ारों लोग कुपोषण और भूक से मर जाते हैं, कोई ज़रा उनसे पूछे की उनके जीवन का क्या लक्ष्य है तो उनका बस एक ही जवाब होगा – पेट भर के खाना।
ये बात भी सच है की अगर इंसान में आगे बढ़ने की चाह न होती तो आज हम अपने जीवन में इतनी तरक्की और सुख सुविधाएं न जुटा पाते, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है की हम अपनी इंसानियत से ऊपर उठकर अपने लालच और कामनाओं को ही अपनी जिंदगी बना लें, क्योंकि इनकी कोई सीमा नहीं होती जिस्से हमें केवल असन्तुष्टि ही प्राप्त होती है।
एक और बात जो की उतनी ही महत्वपूर्ण है, ईश्वर ने हमें आँखें, कान और दिमाग दिया है ताकि हम सच-झूट और सही-गलत का फर्क कर सकें, इसलिए कोई भी और किसी की भी बात मानने से पहले खुद उसको सत्यापित जरूर करना चाहिए।