remedies for celibacy

ब्रह्मचर्य रक्षा के उपाय – ब्रह्मचर्य विज्ञान | Remedies for celibacy – brahmacharya vigyan

 

► परिचय
उपर्युक्त प्रकार के मैथुन के त्याग के अतिरिक्त निम्नलिखित साधन भी ब्रह्मचर्य की रक्षा में सहायक हो सकते हैं

► भोजन में उत्तेजक पदार्थों का सर्वथा त्याग कर देना
भोजन में उत्तेजक पदार्थों का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए | मिर्च, राई, गरम मसाले, अचार, खटाई, अधिक मीठा और अधिक गरम चीजें नहीं खानी चाहिए | भोजन खूब चबाकर करना चाहिए | भोजन सदा सादा, ताजा और नियमित समयपर करना चाहिए | मांस, लहसुन, प्यास आदि अभक्ष्य पदार्थ और मद्य, गांजा, भाँग आदि अन्य नशीली वस्तुएँ तथा केशर, कस्तूरी एवं मकरध्वज आदि वाजीकरण औषधों का भी सेवन नहीं करना चाहिए |

► खुली हवामें सबेरे
यथासाध्य नित्य खुली हवामें सबेरे और सायंकाल पैदल घूमना चाहिए

► सबेरे ब्राह्ममुहूर्त में
रात को जल्दी सोकर सबेरे ब्राह्ममुहूर्त में अर्थात पहरभर रात रहे अथवा सूर्योदय से कम-से-कम घंटे भर पूर्व अवश्य उठ जाना चाहिए | सोते समय पेशाब करके, हाथ पैर धोकर तथा कुल्ला करके भगवान का स्मरण करते हुए सोना चाहिए |

► कुसंग का सर्वथा त्याग
कुसंग का सर्वथा त्याग कर यथासाध्य सदाचारी, वैराग्यवान, भगवद्भक्त पुरुषोंका संग करना चाहिए, जिससे मलिन वासनाएँ नष्ट होकर हृदय में अच्छे भावों का संग्रह हो |

► स्त्री-पुरुष अकेले में कभी न बैठें
पति-पत्नी को छोड़कर अन्य स्त्री-पुरुष अकेले में कभी न बैठें और न एकांत में बातचीत ही करें |

► स्वाध्याय करना चाहिए
भगवद्गीता, रामायण, महाभारत, उपनिषद्, श्रीमद्भागवत आदि उत्तम ग्रंथों का नित्य नियमपूर्वक स्वाध्याय करना चाहिए | इससे बुद्धि शुद्ध होती है और मनमें गंदे विचार नहीं आते |

► मनको सदा किसी-न-किसी अच्छे काम में लगाए
ऐस, आराम, भोग, आलस्य, प्रमाद और पापमें समय नहीं बिताना चाहिए | मनको सदा किसी-न-किसी अच्छे काम में लगाए रखना चाहिए |

► मूत्रत्याग और मलत्याग के बाद
मूत्रत्याग और मलत्याग के बाद इन्द्रिय को ठंडे जलसे धोना चाहिए और मल-मूत्र की हाजत को कभी नहीं रोकना चाहिए |

► ठंडे जलसे
यथासाध्य ठंडे जलसे नित्य स्नान करना चाहिए |

► व्यायाम करना चाहिए
नित्य नियमित रूप से किसी प्रकार का व्यायाम करना चाहिए | हो सके तो नित्यप्रति कुछ आसन एवं प्राणायाम का भी अभ्यास करना चाहिए |

► जप तथा कीर्तन करना चाहिए
यथाशक्ति भगवान् के किसी भी नाम का श्रद्धा-प्रेमपूर्वक जप तथा कीर्तन करना चाहिए | कामवासना जाग्रत हो तो नाम-जप की धुन लगा देनी चाहिए, अथवा जोर-जोर से कीर्तन करने लगना चाहिए | कामवासना नाम-जप और कीर्तन के सामने कभी ठहर नहीं सकती |

► वैराग्य की भावना करनी चाहिए
जगत में वैराग्य की भावना करनी चाहिए | संसार की अनित्यता का बार-बार स्मरण करना चाहिए | मृत्यु को सदा याद रखना चाहिए |

► एकादशी को उपवास करना चाहिए
महीने में कम-से-कम दो दिन अर्थात् प्रत्येक एकादशी को उपवास करना चाहिए और अमावस्या तथा पूर्णिमा को केवल एक ही समय अर्थात् दिन में भोजन करना चाहिए |

► पुरुषों स्त्रियों को शरीर को समझे
पुरुषों को स्त्री के शरीर में और स्त्रियों को पुरुष के शरीर में मलिनत्व-बुद्धि करनी चाहिए | ऐसा समझना चाहिये कि जिस आकृति को हम सुन्दर समझते हैं, वह वास्तव में चमड़े में लपेटा हुआ मांस, अस्थि, रुधिर, मज्जा, मल, मूत्र, कफ आदि मलिन एवं अपवित्र पदार्थों का एक घृणित पिण्डमात्र है |

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