saturn's half and half

शनि की साढ़े-साती – शनि साढ़ेसाती का निवारण | Saturn’s half-and-half – Shani Sade Sati Upay nivaaran

 

प्रायः जीवन में शनि की साढ़ेसती तीन बार आती है. प्रथम बार बचपन में, दूसरी बार युवावस्था में और तीसरी बार वृधावस्था में. प्रथम का प्रभाव शिक्षा पर, दूसरी बार का प्रभाव धन, मान-सम्मान, रोजगार आदि पर और तृतीय का प्रभाव आयु व स्वास्थ्य पर पड़ता है. शनि जब तुला राशि में हो तो कन्या, तुला और वृश्चिक राशि वालों को शनि की साढ़े-सती रहेगी तथा मकर, मेष राशि वालों को ढेया रहेगी. शनि जब वक्री होकर कन्या राशि में प्रवेश करेगा तब सिंह, कन्या, तुला वालों को शनि की साढ़े-सती रहेगी तथा धनु, मीन राशि वालों को ढेया रहेगी. जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में शनि अच्छे स्थान पर, अपनी उच्च राशि में या किसी शुभ फल देने वाले अपने मित्र ग्रह के साथ स्थित हो तथा दशा-अन्तर्दशा अच्छी चल रही हो, उनके लिए शनि का अशुभ फल कम होगा. जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में चन्द्र-शनि अशुभ ग्रह से युक्त, अशुभ स्थानों में हो तो, साढ़े-सती और ढेया उस व्यक्ति के लिए चिंता, धन हानि, कार्य में विघ्न, रोजगार में कमी, परिवार में कलह-विघटन, धन-व्यय एवम हानि आदि का कारण बनती है. शनि के अनिष्ट-फल निवारण के लिए तेल के छाया-पात्र का दान, शनि मंत्र का जप-दशांश हवन, हनुमान जी की पूजा-अभिषेक, तेल युक्त सिंदूर अर्पण कर भक्ति-पूर्वक शनिवार का व्रत, सप्त-धान का दान, प्रातः शनिवार को पीपल का पूजन करने से शनि के अनिष्ट फल निवृत होता है.

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