palm luck

हस्तरेखा से भाग्य – हस्तरेखा ज्योतिष | Palm luck – hastarekha jyotish

 

गर्भावस्था के दौरान ही शिशु के हाथ में लकीरो का जाल बुन जाता है, जो कि जन्म से लेकर मृत्यु तक रेखाओ के रुप में विद्यमान रहता है। इसे हस्त रेखा (Palm line) के रुप में जाना जाता है। सामान्यतया 16 वर्ष तक की आयु के बच्चो की हाथों की रेखाओ में परिवर्तन होता रहता है।

सोलह वर्ष की आयु होने पर मुख्य रेखाएँ (जीवन रेखा, भाग्य रेखा इत्यादि) (Life line, Fortune line) स्थिर हो जाती है तथा कर्मो के अनुसार अन्य छोटे-बडे परिवर्तन होते रहते हैं। तथा ये परिवर्तन जीवन के अंतिम क्षण तक होते रहते हैं (Life line keep on changing throughout life)।
चूंकि हस्त रेखा (Samudrik Shastra)
विज्ञान कर्मो के आधार पर टिका है, इसलिए मनुष्य जैसे कर्म करता है वैसा ही परिवर्तन उसके हाथ की रेखाओ में हो जाता है (Palmistry stand by our work, palm line change with them)। हाथ का विश्लेषण करते समय सबसे पहले हम हाथ की बनावट को देखते हैं तत्पश्चात यह देखा जाता है कि हाथ मुलायम है या सख्त।आम तौर पर पुरुषो का दायाँ हाथ तथा स्त्रियों का बायाँ हाथ देखा जाता है।यदि कोइ पुरुष बायें हाथ से काम करता है तो उसका बायाँ हाथ देखा जाता है। हाथ में जितनी कम रेखाऎं होती हैं, भाग्य की दृष्टि से हाथ उतना ही सुन्दर माना जाता है (Lots of Palm line are not good for Fortune)।

हस्त रेखा व्यक्ति के अतीत, वर्तमान और भविष्य जानने की एक प्राचीन विज्ञान है। नारद, वाल्मीकि, गर्ग, भृगु, पराशर, कश्यप, अत्री, बृहस्पति, प्रहलाद, कात्यायन, वराहमिहिर आदि ऋषि मुनियों ने इस पर बहुत काम किया है। इसके बारे में स्कंध पुराण, भविष्य पुराण, बाल्मीकि रामायण, महाभारत, हस्तसंजीवनी आदि ग्रंथो में वर्णन है। ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले समुद्र नामक ऋषि ने इसका व्यापक प्रचार प्रसार किया, इसीलिए इसे सामुद्रिक शास्त्र के नाम से भी जाना जाने लगा।

हस्तरेखा विज्ञान बहुत प्राचीन विज्ञान है। किसी भी व्यक्ति के हाथ के गहन अध्ययन द्वारा उस व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों के बारे में आसानी से बताया जा सकता है। हस्तरेखा में उंगलियों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। उंगलियों के द्वारा व्यक्ति का पूरी तरह एक्स-रे किया जा सकता है।

उंगलियां छोटी-बड़ी, मोटी-पतली, टेढ़ी-मेढ़ी, गाँठ वाली तथा बिना गांठ वाली कई प्रकार की होती हैं। प्रत्येक उंगुली तीन भागों में बंटी होती है, जिन्हें पोर कहते हैं। पहली उंगली को तर्जनी, दूसरी उंगली को मध्यमा, तीसरी उंगुली को अनामिका तथा चौथी उंगुली को कनिष्ठा कहा जाता है। ये उंगलियां क्रमशः बृहस्पति, शनि, सूर्य तथा बुध के पर्वतों पर आधारित होती हैं।

प्रत्येक उंगली की अलग-अलग परीक्षा की जाती है। लम्बाई के हिसाब से अधिक लम्बी उंगलियों वाला व्यक्ति दूसरे के काम में हस्तक्षेप अधिक करता है। लम्बी और पतली उंगलियों वाला व्यक्ति चतुर तथा नीतिज्ञ होता है। छोटी उंगलियों वाला व्यक्ति अधिक समझदार होता है। बहुत छोटी उंगलियों वाला व्यक्ति सुस्त, स्वार्थी तथा क्रूर प्रवृति का होता है। जिस व्यक्ति की पहली उंगली यानी अंगूठे के पास वाली उंगली बहुत बड़ी होती है, वह व्यक्ति तानाशाही अर्थात् लोगों पर अपनी बातें थोपने वाला होता है।

यदि उंगलियों मिलाने पर तर्जनी और मध्यमा के बीच छेद हो तो व्यक्ति को 35 वर्ष की उम्र तक धन की कमी रहती है। यदि मध्यमा और अनामिका के बीच छिद्र हो तो व्यक्ति को जीवन के मध्य भाग में धन की कमी रहती है। अनामिका और कनिष्का के बीच छिद्र बुढ़ापे में निर्धनता का सूचक है। जिस व्यक्ति की कनिष्ठा उंगली छोटी तथा टेड़ी-मेड़ी हो तो वह व्यक्ति जल्दबाज तथा बेईमान होता है।

यदि उंगलियों के अग्र भाग नुकीले हों और उंगलियों में गांठ दिखाई न दे, तो व्यक्ति कला और साहित्य का प्रेमी तथा धार्मिक विचारों वाला होता है। काम करने की क्षमता इनमें कम होती है।

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