श्वेत वराह युग में जब दैत्य महिषासुर का जन्म हुआ तब वह अपने पूर्वजन्मों की बातें जानने के लिए इच्छुक हो उठा और पता लगाने लगा कि कौन ऐसे तपोनिष्ठ ऋषि-महात्मा हैं जो भूत-भविष्य एवं वर्तमान की बातें जानते हैं। चूंकि महिषासुर दृढ़संकल्पी पुरुष था इसलिए उसने खोज करके जानकारी प्राप्त कर ही ली कि हिमालय के निचले हिस्से वाले जंगल में एक ऐसे ऋषि मौजूद हैं जो त्रिकालदर्शी हैं। बस महिषासुर वहां पहुंच गया। ऋषि का नाम जैगीश्रव्य था और वे गुरुकुल भी चलाते थे। महिषासुर इनके गुरुकुल में शामिल हो गया और सेवा-टहल करके जैगीश्रव्य के दिल को जीत लिया। फिर आग्रह करने लगा कि आप हमारे पूर्वजन्मों की बातें बतायें।
तब एक दिन ऋषि जैगीश्रव्य ने बता ही दिया कि तुम्हारे तो कई जन्म हो चुके हैं और प्रत्येक जन्म में एक नारी द्वारा मारे गये हो।
‘कौन है वह नारी?’ महिषासुर चीख उठा। उसने अपनी बांहें टटोली जिनमें असीमित बल भरा हुआ था। उसने ठठाकर हंसते हुए सवाल किया— भला कोई औरत मुझ जैसे ताकतवर मर्द को कैसे मार सकती है। मैं उस नारी से मिलना चाहता हूं गुरुदेव।
‘तब उसकी आराधना करो वत्स, वह वीरांगना होने के साथ-साथ दयामयी भी है।’
‘कहां रहती है वह… क्या नाम है उसका?’
‘उसका नाम भगवती दुर्गा है पुत्र, वह हिमशिखर पर रहती हैं और सिंह की सवारी करती हैं इसलिए लोग उसे सिंहवाहिनी भी कहते हैं। तुम यदि उस देवी की आराधना करना चाहते हो तब पुष्कर नामक पहाड़ पर चले जाओ क्योंकि उस तरफ देवी दुर्गा की चौंसठ योगिनियां तरह-तरह की सिद्धियां प्राप्त करने हेतु आती रहती हैं। वे सब तुम्हारा संदेश देवी दुर्गा तक जरूर पहुंचा देंगी।’
ऋषि जैगीश्रव्य की बातें महिषासुर को जंच गयीं। वह पुष्कर पर्वत के उच्च शिखर पर आ बैठा और दुर्गाय नम: का पाठ करने लगा। यह यात्रा बेहद कठिन थी लेकिन महिषासुर पूरे मनोयोग से जुटा था। इसकी पुकार से देवी दुर्गा विवश हो गयीं और एक दिन सायं के वक्त सिंह पर सवार होकर उस स्थान पर आ गयीं जहां महिषासुर तपस्या कर रहा था। वह सम्मोहन की तंद्रावस्था में था लेकिन देवी की उपस्थिति से उस दैत्य की मनोदशा बदल गयी। उसकी मुंदी पलकें खुल गयीं। फिर तो उसके अचरज का ठिकाना न रहा क्योंकि पुष्कर पर्वत के चारों तरफ अद्भुत प्रकाश फैला हुआ था। एक अद्वितीय सुंदर नारी महिषासुर को ही निहार रही थी। इस मोहक दृश्य को देखकर महिषासुर स्वत: बुदबुदाया— कौन है यह सुंदरी जिसके हर अंग से सृष्टि की संपूर्ण सुघड़ता झलक मार रही है?
‘मैं ही दुर्गा हूं महिषासुर, तुम्हारी तपस्या से प्रभावित होकर आयी हूं अत: शीघ्र बताओ कि तुम यहां तक क्यों आये हो और मुझसे क्या चाहते हो?’
‘मैं तो अपने पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म के रहस्यों को जानने के लिए आया था। लेकिन आपकी इतनी कोमल छवि को देखकर सोच रहा हूं कि मुझ जैसे ताकतवर को आप कैसे मार सकती हैं?’
‘—मैंने ही तुझे मारा है महिषासुर और ऐसी भयानकता से मारा है कि वह दृश्य यदि तुम्हारी स्मृति में आ जाये तो तुम होश गंवा बैठोगे। इसके अलावा एक सच और भी जान लो कि तुम्हारे इस वर्तमान जन्म में भी मेरे लिए ऐसी विवशता है कि मैं ही तुझे मारूंगी। इस बार इतनी क्रूरता करूंगी कि जन्म -जन्म का लेखा-जोखा चुकता हो जायेगा।’
‘लेकिन मुझे विश्वास नहीं होता है देवी, आप इतनी कोमल हैं और मैं इतना शक्तिमान हूं।’
‘तुम पुन: अपनी शक्ति पर अहंकार कर रहे हो दैत्यराज,’ देवी दुर्गा खिलखिला कर हंस पड़ीं। इनकी हंसी की मधुर खनक सीधे महिषासुर के दिल में समा गयी जिससे उसने अपने को ठगा-सा महसूस किया। मगर इसके बावजूद उसने देवी दुर्गा से आग्रह किया कि मैं आपके उस भयावह रूप को देखना चाहता हूं जिस रूप से आपने मेरा वध किया है।
‘तुम जिद न करो महिषासुर’, भगवती दुर्गा ने मना किया मगर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। तब देवी मान गयीं। फिर तत्क्षण अपनी मधुर आवाज को इतना कठोर बनाया मानो हथौड़े से पत्थर पर प्रहार कर रही हो। देवी की आंखें भी अंगारों के समान दहक उठीं फिर मुख से डिंग-डिंग-डिंग जैसी ललकार भरी आवाज निकलने लगी। इनका कोमल रूप इतना कठोर हो गया कि महिषासुर थर-थर कांपने लगा और मूच्र्छित हो गया।
तब देवी दुर्गा पुन: अपने सौम्य रूप में आ गयीं और मीठे स्वर में महिषासुर को पुकार कर उसकी तंद्रा तुड़वायी। किन्तु अब इस दैत्य के समक्ष जन्म-जन्मांतर के रहस्य खुल चुके थे इसलिए उसने याचना करते हुए कहा, ‘देवी आप हमें तीन वरदान दें।’
‘हां-हां मांगो महिषासुर’ देवी दुर्गा बोलीं तो दैत्य महिषासुर ने मांगा— हमें पहला वरदान यह दें कि इस वर्तमान जन्म में जब आप मेरा वध करें तो इतनी भयंकर न बनें बल्कि सौम्य स्वरूप में ही रहें।’
‘तथास्तु महिषासुर ! अब दूसरा एवं तीसरा वरदान भी मांग लो।’
‘हां देवी, दूसरा वरदान यह है कि आपके साथ-साथ मेरा अस्तित्व भी सदैव बरकरार रहे यानी मैं भी याद किया जाऊं। फिर तीसरा वरदान यह दीजिए कि जिस वक्त मेरा वध करें उस वक्त सिर झुकाकर मेरी तरफ ही देखें ताकि मुझे मृत्यु का कष्ट न हो।’
‘तथास्तु! महिषासुर’ देवी दुर्गा वरदान देकर अंतध्र्यान हो गयीं। तब से अब तक उक्त वरदान को ध्यान में रखकर ही दुर्गा मां की मूर्ति का निर्माण किया जाता है।