introduction to vedic philosophy

वैदिक दर्शन के परिचय – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Introduction to Vedic Philosophy – vaidik jyotish Shastra

 

वैदिक दर्शन के परिचय के लिये यह वेदान्गी भूत ज्योतिष दर्शन सूर्य के समान प्रकाश देने का काम करता है,अतएव इसे वेद पुरुष या ब्रह्मपुरुष का चक्षु: (सूर्य) भी कहा गया है। ज्योतिषामयनं चक्षु: सूर्यो अजायत,इत्यादि आगम वचनों के आधार से त्रिस्कंध ज्योतिष शास्त्र के के प्रधान प्रमुख सर्वोपादेय ग्रह गणित ग्रन्थ का नाम तक सूर्य सिद्धान्त या चक्षुसिद्धान्त कहा गया है। अथवा अनन्त आकाशीय ग्रह नक्षत्र आकाश गंगा नीहारिका सम्पन्न जो स्वयं अनन्त है,उस ब्रह्म दर्शक चक्षु रूप शास्त्र का नाम ज्योतिष शास्त्र कहा गया है। जिसके यथोचित स्वरूप का ज्ञान प्राचीन भारतीयों को हो चुका था,संक्षेप मे इसी लिये यहां ज्योतिष शास्त्र का इतिहास लिखा जा रहा है।

भारतीय ज्योतिष का प्राचीनतम इतिहास (खगोलीय विद्या) के रूप सुदूर भूतकाल के गर्भ मे छिपा है,केवल ऋग्वेद आदि प्राचीन ग्रन्थों में स्फ़ुट वाक्याशों से ही आभास मिलता है,कि उसमे ज्योतिष का ज्ञान कितना रहा होगा। निश्चित रूप से ऋग्वेद ही हमारा प्राचीन ग्रन्थ है,बेवर मेक्समूलर जैकीबो लुडविंग ह्विटनी विंटर निट्ज थीवो एवं तिलक ने रचना एवं खगोलीय वर्णनो के आधार पर ऋग्वेद के रचना का काल ४००० ई. पूर्व स्वीकार किया है। चूंकि ऋग्वेद या उससे सम्बन्धित ग्रन्थ ज्योतिष ग्रन्थ नही है,इसलिये उसमे आने वाले ज्योतिष सम्बन्धित लेख बहुधा अनिश्चित से है,परन्तु मनु ने जैसा कहा है कि “भूतं भव्यं भविष्यं च सर्वं वेदात्प्रसिद्धयति”। इससे स्पष्ट है कि वेद त्रिकाल सूत्रधर है, और इसके मंत्र द्रष्टा ऋषि भी भी त्रिकादर्शी थे। वेदों के मंत्र द्रष्टा ऋषि भूगोल खगोल कृष शास्त्र एव राजधर्म प्रभृति के अन्वेषण में संलग्न रहते थे। खगोल सम्बन्धी परिज्ञान के लिये आकाशीय ग्रह नक्षत्रों के सिद्धान्त वेदों में अन्वेषित किये जा सकते हैं।

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