malavya yoga

मालव्य योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Malavya Yoga – vaidik jyotish Shastra

 

मालव्य योग को वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी कुंडली में बनने वाले बहुत शुभ योगों में से एक माना जाता है तथा यह योग पंचमहापुरुष योग में से एक है। पंच महापुरुष योग में आने वाले शेष चार योग हंस योग, रूचक योग, भद्र योग एवम शश योग हैं। वैदिक ज्योतिष में मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में मालव्य योग बनता है जिसका शुभ प्रभाव जातक को साहस, पराक्रम, शारीरिक बल, तर्क करने की क्षमता तथा समयानुसार उचित निर्णय लेने की क्षमता प्रदान कर सकता है। माल्वय योग के शुभ प्रबाव में आने वाले जातक सुंदर तथा आकर्षक होते हैं तथा इनमें दूसरे लोगों को विशेषतया विपरीत लिंग के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की प्रबल क्षमता होती है जिसके चलते ऐसे पुरुष जातक स्त्रियों को तथा स्त्री जातक पुरुषों को बहुत पसंद आते हैं। माल्वय योग के विशेष प्रभाव में आने वाले कुछ जातक अपनी सुंदरता तथा कलात्मकता के चलते सिनेमा जगत, माडलिंग आदि क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करते हैं। माल्वय योग के प्रबल तथा विशेष प्रभाव में आने वालीं स्त्रियां बहुत सुंदर तथा आकर्षक होतीं हैं तथा ये किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में जीत कर राष्ट्रीय अथवा अंतर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर सकतीं हैं।

► मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा
मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा का यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लगभग हर 12वीं कुंडली में मालव्य योग का निर्माण होता है। कुंडली में 12 घर तथा 12 राशियां होती हैं तथा इनमें से किसी भी एक घर में शुक्र के स्थित होने की संभावना 12 में से 1 रहेगी तथा इसी प्रकार 12 राशियों में से भी किसी एक राशि में शुक्र के स्थित होने की संभावना 12 में से एक ही रहेगी। इस प्रकार 12 राशियों तथा बारह घरों के संयोग से किसी कुंडली में शुक्र के किसी एक विशेष राशि में ही किसी एक विशेष घर में स्थित होने का संयोग 144 में से एक कुंडलियों में बनता है जैसे कि लगभग प्रत्येक 144वीं कुंडली में शुक्र पहले घर में मीन राशि में स्थित होते हैं। मालव्य योग के निर्माण पर ध्यान दें तो यह देख सकते हैं कि कुंडली के पहले घर में शुक्र तीन राशियों वृष, तुला तथा मीन में स्थित होने पर मालव्य योग बनाते हैं। इसी प्रकार शुक्र के किसी कुंडली के चौथे, सातवें अथवा दसवें घर में भी मालव्य योग का निर्माण करने की संभावना 144 में से 3 ही रहेगी तथा इन सभी संभावनाओं का योग 12 आता है जो कुल संभावनाओं अर्थात 144 का 12वां भाग है जिसका अर्थ यह हुआ कि मालव्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग हर 12वीं कुंडली में इस योग का निर्माण होता है।

► मालव्य योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित
मालव्य योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है तथा इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले शुभ फल प्रत्येक 12वें व्यक्ति में देखने को नहीं मिलते जिसके कारण यह कहा जा सकता है कि केवल शुक्र की कुंडली के किसी घर तथा किसी राशि विशेष के आधार पर ही इस योग के निर्माण का निर्णय नहीं किया जा सकता तथा किसी कुंडली में मालव्य योग के निर्माण के कुछ अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी भी अन्य शुभ योग के निर्माण के भांति ही मालव्य योग के निर्माण के लिए भी यह अति आवश्यक है कि कुंडली में शुक्र शुभ हों क्योंकि कुंडली में शुक्र के अशुभ होने से शुक्र के उपर बताए गए विशेष घरों तथा राशियों में स्थित होने पर भी मालव्य योग नहीं बनेगा अपितु इस स्थिति में शुक्र कुंडली में किसी गंभीर दोष का निर्माण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में अशुभ शुक्र यदि वृष, तुला अथवा मीन राशि में कुंडली के पहले घर में स्थित हो तो ऐसी कुंडली में माल्वय योग नहीं बनेगा अपितु इस कुंडली में अशुभ शुक्र दोष बना सकता है जिसके कारण जातक के चरित्र, व्यक्तित्व तथा व्यवसाय आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है जिसके चलते इस दोष के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक भौतिक सुखों की चरम लालसा रखने वाले होते हैं तथा अपनी इन लालसाओं की पूर्ति के लिए ऐसे जातक किसी अवैध अथवा अनैतिक कार्य में सलंग्न हो सकते हैं जिसके कारण इन्हें समय समय पर मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है तथा समाज में अपयश भी मिल सकता है। इसी प्रकार कुंडली के उपर बताए गए अन्य घरों में स्थित अशुभ शुक्र भी मालव्य योग न बना कर कोई दोष बना सकता है जो अपनी स्थिति और बल के अनुसार जातक को अशुभ फल दे सकता है। इसलिए किसी कुंडली में मालव्य योग बनाने के लिए शुक्र का उस कुंडली में शुभ होना अति आवश्यक है।

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