यह अकाट्य सत्य है कि जीव को अपने किये कर्म निश्चित भोगने पडेंगे, जब जीव धोखेबाज दगाबाज या कर्ज लेकर वापस नही करता, या सहायता के लिये लिया पैसा वापस नही करता, निकृष्ट दलित गलित निन्दनीय कार्य करता है, समाज की कुल की तथा शास्त्र की आज्ञा का उलंघन करता है, तो राहु उसके साथ क्रूरता करता है, राहु राक्षस होने के कारण बुरी तरह से प्रताडित करता है। कठोरता से कर्म का भोग करवाता है, पागलपन अनिद्रा मस्तिष्क की चेतना समाप्त कर देता है, जिसके कारण जातक की निर्णय शक्ति समाप्त हो जाती है, वह अपने हाथों से अपने पैरों को काटना शुरु कर देता है, यदि जातक बहुत अधिक निन्दनीय कर्मी है, तो दूसरे जन्म में पैदा होने के बाद बचपन से ही उसकी चेतना को बन्द कर देता है, और उसे अपने घर से भगा देता है, और याद भी नही रहने देता कि वह कहां से आया है, उसका कौन बाप है और कौन मां है, वह रोटी पानी के लिये जानवरों की भांति दर दर का फ़िरता रहता है, कोई टुकडा डाल भी दे तो खाता है, और आसपास के जानवर उसे खाने भी नही देते, कमजोर होने पर वह या तो किसी रेलवे स्टेशन पर मरा मिलता है, अथवा कुत्तों के द्वारा उसे खा लिया जाता है, कभी कभी अधिक ठंड या बरसात या गर्मी के कारण रास्ते पर मर जाता है, यह सब उसके कर्मो का फ़ल ही उसे मिलता है, बाप के किये गये कर्मो का फ़ल पुत्र भोगता है, पुत्र के किये गये कर्म पौत्र भोगता है, इसी प्रकार से सीढी दर सीढी राहु भुगतान करता रहता है। किसी भी समस्या के लिये सम्पर्क कर सकते है
