rahu ki visheshta - rahu ke prakop

राहु की विशेषता – राहु के प्रकोप – आठवाँ दिन – Day 8 – 21 Din me kundli padhna sikhe – rahu ki visheshta – rahu ke prakop – Aathavaan Din

राहु छाया ग्रह है, ग्रन्थों मे इसका पूरा वर्णन है, और श्रीमदभागवत महापुराण में तो शुकदेवजी ने स्पष्ट वर्णन किया कि यह सूर्य से १० हजार योजन नीचे स्थित है, और श्याम वर्ण की किरणें निरन्तर पृथ्वी पर छोडता रहता है, यह मिथुन राहि में उच्च का होता है धनु राशि में नीच का हो जाता है, राहु और शनि रोग कारक ग्रह है, इसलिये यह ग्रह रोग जरूर देता है। काला जादू तंत्र टोना आदि यही ग्रह अपने प्रभाव से करवाता है। अचानक घटनाओं के घटने के योग राहु के कारण ही होते है, और षष्टांश में क्रूर होने पर ग्रद्य रोग हो जाते है। राहु के बारे में हमे बहुत ध्यान से समझना चाहिये, बुध हमारी बुद्धि का कारक है, जो बुद्धि हमारी सामान्य बातों की समझ से सम्बन्धित है, जैसे एक ताला लगा हो और हमारे पास चाबियों का गुच्छा है, जो बुध की समझ है तो वह कहेगा कि ताले के अनुसार इस आकार की चाबी इसमे लगेगी, दस में से एक या दो चाबियों का प्रयोग करने के बाद वह ताला खुल जायेगा, और यदि हमारी समझ कम है, तो हम बिना बिचारे एक बाद एक बडे आकार की चाबी का प्रयोग भी कर सकते है, जो ताले के सुराख से भी बडी हो, बुध की यह बौद्धिक शक्ति है क्षमता है, वह हमारी अर्जित की हुई जानकारी या समझ पर आधारित है, जैसे कि यह आदमी बडा बुद्धिमान है, क्योंकि अपनी बातचीत में वह अन्य कई पुस्तकों के उदाहरण दे सकता है, तो यह सब बुध पर आधारित है, बुध की प्रखरता पर निर्भर है, और बुध का इष्ट है दुर्गा। राहु का इष्ट है सरस्वती, सम्भवत: आपको यह अजीब सा लगे कि राहु का इष्ट देवता सरस्वती क्यों है, क्योंकि राहु हमारी उस बुद्धि का कारक है, जो ज्ञान हमारी बुद्धि के बावजूद पैदा होता है, जैसे आविष्कार की बात है, गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त न्यूटन ने पेड से सेब गिरने के आधार पर खोजा, यह सिद्धान्त पहले उसकी याददास्त में नही था, यहां जब दिमाग में एकदम विचार पैदा हुआ, उसका कारण राहु है, बुध नही होगा, जैसे स्वप्न का कारक राहु है, एक दिन अचानक हमारा शरीर अकडने लगा, दिमाग में तनाव घिर गया, चारों तरफ़ अशांति समझ में आने लगी, घबराहट होने लगी, मन में आने लगा कि संसार बेकार है, और इस संसार से अपने को हटा लेना चाहिये, अब हमारे पास इसका कारण बताने को तो है नही, जो कि हम इस बात का विश्लेषण कर लेते, लेकिन यह जो मानसिक विक्षिप्तता है, इसका कारण राहु है, इस प्रकार की बुद्धि का कारक राहु है, राहु के अन्दर दिमाग की खराब आलमतों को लिया गया है, बेकार के दुश्मन पैदा होना, यह मोटे तौर पर राहु के अशुभ होने की निशानी है, राहु हमारे ससुराल का कारक है, ससुराल से बिगाड कर नही चलना, इसे सुधारने के उपाय है, सिर पर चोटी रखना राहु का उपाय है, आपके दिमाग में आ रहा होगा कि चोटी और राहु का क्या सम्बन्ध है, चोटी तो गुरु की कारक है, जो लोग पंडित होते है पूजा पाठ करते है, धर्म कर्म में विश्वास करते है, वही चोटी को धारण करते है, राहु को अपना कोई भाव नही दिया गया है, इस प्रकार का कथन वैदिक ज्योतिष में तो कहा गया है, पाश्चात्य ज्योतिष में भी राहु को नार्थ नोड की उपाधि दी गयी है, लेकिन कुन्डली का बारहवां भाव राहु का घर नही है तो क्या है, इस अनन्त आकाश का दर्शन राहु के ही रूप में तो दिखाई दे रहा है, इस राहु के नीले प्रभाव के अन्दर ही तो सभी ग्रह विद्यमान है, और जितना दूर हम चले जायेंगे, यह नीला रंग तो कभी समाप्त नही होने वाला। राहु ही ब्रह्माण्ड का दृश्य रूप है।

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