ग्रह अपने से सप्तम स्थान को देखता है, यह सभी शास्त्रों में प्रचिलित है, साथ ग्रह अपने से चौथे भाव को अपनी द्रिष्टि से शासित रखता है और ग्रह अपने से दसवें भाव के लिये कार्य करता है, लेकिन सप्तम के भाव और ग्रह से ग्रह का जूझना जीवन भर होता है, इसके साथ ही शनि और राहु केतु के लिये बहुत जरूरी है कि वह अपने अनुसार वक्री में दिमागी बल और मार्गी में शरीर बल का प्रयोग जरूर करवायेंगे, लेकिन जन्म का वक्री गोचर में वक्री होने पर तकलीफ़ देने वाला ग्रह माना जायेगा।
