आपकी जन्म कुंडली आपके अतीत, वर्तमान और भविष्य का आइना होती है। आप भविष्य में किन-किन हालातों का सामना करेंगे, किस समय कौन-सी घटना आपके जीवन को क्या मोड़ देगी, यह सब कुंडली का आंकलन कर जाना जा सकता है।
कुंडली को जांचना एक मशक्कत भरा कार्य है, इसका कारण है ज्योतिषीय अपवाद, जिसकी वजह से एक ही तरह की कुंडली के लोगों का जीवन अलग-अलग हो जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में अपवादों की भरमार हैं, यह एक जटिल विद्या है। शायद इसलिए ज्यादातर ज्योतिषाचार्य उथले तौर पर जांचकर भविष्यवाणी कर देते हैं जो ज्यादातर मामलों में नुकसानदेह ही साबित होती है। इसलिए कहा जाता है ज्योतिष की थोड़ी-बहुत समझ सभी में होनी चाहिए।
घटना या दुर्घटना कैसे भी हालात हों, कुंडली द्वारा इनके होने के समय को जाना जा सकता है। आज हम आपको बताएंगे कि आपकी कुंडली के आधार जीवन में होने वाली दुर्घटना के योग को कैसे जाना और समझा जा सकता है।
जिस व्यक्ति की कुंडली में छठे और आठवें भाव का स्वामी अशुभ ग्रहों के साथ बैठा होता है ऐसे व्यक्ति के जीवन में दुर्घटना घटित होने की संभावना प्रबल हो जाती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दुर्घटना का सीधा संबंध लग्न और लग्नेश से होता है। लग्न का अर्थ शरीर से होता है, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि लग्न में शुभ ग्रह का होना ही उत्तम होता है।
मारक या अशुभ ग्रह जब भी लग्न या लग्नेश पर गोचर करते हैं तो व्यक्ति के दुर्घटना की चपेट में आने की संभावना बढ़ जाती है। वहीं अगर मारक ग्रह की अंतरदशा चल रही हो तो जातक को कष्ट पहुंचने का योग बनता है।
मंगल और शनि ग्रह मिलकर दुर्घटना के योग बनाते हैं।
वहीं लग्न या फिर द्वीतीय भाव में राहु और मंगल मौजूद हों तो दुर्घटना के योग बनते हैं।
लग्न में शनि या मंगल ग्रह का होना अशुभ संकेत लाता है।
तीसरे भाव में मंगल या शनि स्थित हों तो भी घातक साबित होता है।