राहू कुंडली के नौवें घर में, केतु तीसरे घर में और बाकि गृह इन दोनों के मध्य फसे हो तो इसे शंखनाद कालसर्प कहते है ! शंखनाद कालसर्प दोष का जातक के जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ता है, जातक को जीवन के किसी भी क्षेत्र में किस्मत या भाग्य का साथ नहीं मिलता, बने बनाये काम बिना किसी कारण के बिगड़ जाते है! जातक को जीवन चर्या के लिए अधिक महनत करनी पड़ती है! जातक के बचपन में उसके पिता पर इस दोष का बुरा असर पड़ता है और लोग कहते है की इस बच्चे के आने के बाद घर में समस्याए आ गयी ! यह कालसर्प एक तरह का पितृ दोष का निर्माण भी करता है, जिसके प्रभाव से जातक नाकामयाबी और आर्थिक संकट जैसी परेशानियों से जूझना पड़ता है !
ज्योतिषशास्त्रियों का मानना है कि कालसर्प दोष जिस व्यक्ति की जन्मपत्री में होता है उसके भाग्य में अड़चनें आती हैं। इसके कारण से जीवन में धूप-छांव की स्थिति बनी रहती है। व्यक्ति की आजीविका नौकरी अथवा व्यसाय जिससे भी चलती हो उसमें स्थायित्व की कमी रहती है। इससे आर्थिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
यह दोष पिता के साथ सम्बन्धों में दूरियां लाने की कोशिश करता है अत: जिस व्यक्ति की जन्मपत्री में यह योग हो उसे पिता के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए। यदि किसी बात को लेकर पिता क्रोधित हों तो विवाद करने की बजाय ग़लती मानकर मुद्दे को सुलझा लेने में ही भलाई होती है। ऐसा करने से व्यक्ति पिता के मन में जगह बना पाता है। इससे भाग्य में आने वाली बाधाएं भी कम होती हैं।
शंखचूड़ कालसर्प दोष की शांति के लिए भगवान श्री कृष्ण की पूजा करना लाभकारी होता है। इस दोष के अशुभ फल को कम करके भाग्य को मजबूत बनाने हेतु व्यक्ति को चांदी की अंगूठी में गोमेद रत्न धारण करना चाहिए। पितृ पक्ष में व्यक्ति यदि पितरों के निमित्त पिण्ड दान करता है तथा अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दान देता है तो इससे पितृ गण प्रसन्न होते हैं फलत: कालसर्प दोष के अशुभ प्रभाव से व्यक्ति का बचा रहता है।