किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि पंचम भाव में शनि तथा सूर्य हों और सप्तम भाव में कमजोर चंद्रमा स्थित हो तथा लग्न में राहु, बारहवें भाव में गुरु हो तब प्रेत श्राप के कारण वंश बढ़ने में समस्या आती है।
यदि कोई व्यक्ति अपने दिवंगत पितरों और अपने माता-पिता का श्राद्ध कर्म ठीक से नहीं करता हो या अपने जीवित बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर रह हो तब इसी प्रेत बाधा के कारण वंश वृद्धि में बाधाएँ आ सकती हैं।
प्रेत शांति के लिए भगवान शिवजी का पूजन करवाने के बाद विधि-विधान से रुद्राभिषेक कराना चाहिए। ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, फल, गोदान आदि उचित दक्षिणा सहित अपनी यथाशक्ति अनुसार देनी चाहिए। इससे प्रेत बाधा से राहत मिलती है।
गयाजी, हरिद्वार, प्रयाग आदि तीर्थ स्थानों पर स्नान तथा दानादि करने से लाभ और शुभ फलों की प्राप्ति होती है।