सौरमंडल में नवग्रह पाए जाते है। इन नवग्रहों में सात ग्रहों के अपने पिंड किन्तु राहू तथा केतु का कोई पिंड नहीं है। इन्हें छाया ग्रह माना गया है। इन नवग्रहों में एक ग्रह बुधग्रह है। यह सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। इसे ग्रहों में राजकुमार का पद प्राप्त है। यह वाणी, विद्या एवम बुद्धि का प्रतिक है। इसे नपुंसक ग्रह माना गया है। इसकी जाति शुद्र तत्व पृथ्वी तथा उतर दिशा का मालिक है। यह ग्रह मिथुन तथा कन्या राशि का स्वामी है। इस ग्रह का रंग हरा होता है ।यह एक बहुत ही सोम्य और सरल ग्रह है । इस ग्रह के अधिपति देवता गणेश जी माने जाते है।
पुराणों में इनके पिता का नाम चन्द्रमा तथा माता का नाम तारा है। ब्रह्माजी ने इनकी बुद्धि तेज होने के कारण इनका नाम बुध रखा। बुधग्रह कन्या राशि में उच्च का तथा मीन राशि में नीच का होता है। इसका अधिकार कंधे व ग्रीवा पर रहता है। वृष,तुला तथा सिंह इसकी मित्र एवम कर्क इसकी शत्रु राशि है। शुक्र के साथ राजस तथा चन्द्रमा के साथ यह ग्रह शत्रुवत व्यवहार करता है। अपने भाव से सातवे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है। राहु, शनि, मंगल एवम केतु के साथ अशुभ फल देता है। अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती इनके नक्षत्र है। बुधग्रह व्यापार का भी कारक होता है। इसकी महादशा 17 वर्ष की होती है। जब बुधग्रह उच्च का होता है तब वह जातक को समाज में सम्मान प्राप्त कराता है। जिस व्यक्ति की राशी में बुध उच्च का होता है वह व्यक्ति कुशल सम्पादक प्रसिद्ध लेखक, कवि एवम सचिव या सलाहकार होता है। शास्त्रों के सम्बन्ध में तर्क करने की शक्ति रखता है।
उस व्यक्ति में निरंतर कार्य करने की क्षमता होती है, परन्तु यदि बुधग्रह किसी व्यक्ति की राशी में नीच का हो तो व्यक्ति अपने भाई बन्धुओ द्वारा अपमानित किया जाता है। बुध अगर कुंडली में कमजोर हो तो पारिवारिक जीवन को प्रभावित करता है और जातक की शादी लेट होती है कभी कभी होती ही नहीं, शादी शुदा जिन्दगी में भी शारीरिक सुखो में कमी आती है पति और पत्नी भी आपस में एक दुसरे के सामने झूठ बोलते है व आपस में काफी मनमुटाव होता है कलेश चलता रहता है और कभी कभी तो सम्बन्ध भी विच्छेद हो जाते है । अगर किसी का वैवाहिक जीवन कलेश्मय हो तो समझना की बुध ग्रह कुंडली में कमजोर है । बुध के मजबूत होने से धन धन्य की कमी नहीं रहती जीवन बहुत आनद से गुजरता जाता है । अगर व्यापार में भी बार बार घाटा होता है या बदलना पड़ता है तो बुध ही इसका कारन होता है । अगर वकालत, दलाली आदि का काम नहीं चलता है तो भी बुध ही इसका कारन होता है ।
पन्ना इसका रत्न होता है और पीतल इसका धातु होता है । बुध की शांति के लिए स्वर्ण का दान करना चाहिए. हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है. इन वस्तुओं के दान के लिए ज्योतिषशास्त्र में बुधवार के दिन दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है.बुध की दशा में सुधार हेतु बुधवार के दिन व्रत रखना चाहिए. गाय को हरी घास और हरी पत्तियां खिलानी चाहिए. ब्राह्मणों को दूध में पकाकर खीर भोजन करना चाहिए. बुध की दशा में सुधार के लिए विष्णु सहस्रनाम का जाप भी कल्याणकारी कहा गया है. रविवार को छोड़कर अन्य दिन नियमित तुलसी में जल देने से बुध की दशा में सुधार होता है. अनाथों एवं गरीब छात्रों की सहायता करने से बुध ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को लाभ मिलता है. मौसी, बहन, चाची बेटी के प्रति अच्छा व्यवहार बुध ग्रह की दशा से पीड़ित व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है .बुधवार का व्रत करना चाहिए। विष्णु भगवान का पूजन करना चाहिए। 10 मुखी रुद्राक्ष धारण करें
बुध पूजा की विधि में प्रयोग होने वाली महत्वपूर्ण क्रियाओं के बारे में विचार करेंगे। ज्योतिष बुध पूजा का सुझाव मुख्य रूप से किसी कुंडली में अशुभ रूप से कार्य कर रहे बुध की अशुभता को कम करने के लिए, अशुभ बुध द्वारा कुंडली में बनाए जाने वाले किसी दोष के निवारण के लिए अथवा किसी कुंडली में शुभ रूप से कार्य कर रहे बुध की शक्ति तथा शुभ फल बढ़ाने के लिए देता है। बुध पूजा का आरंभ सामान्यतया बुधवार वाले दिन किया जाता है तथा उससे अगले बुधवार को इस पूजा का समापन कर दिया जाता है जिसके चलते इस पूजा को पूरा करने के लिए सामान्यता 7 दिन लगते है।
सबसे पूर्व भगवान शिव परिवार की पूजा फल, फूल, दूध, दहीं, घी, शहद, शक्कर, धूप, दीप, हलवे के प्रसाद तथा अन्य कई वस्तुओं के साथ की जाती है तथा इसके पश्चात मुख्य पंडित के द्वारा बुध वेद मंत्र का जाप पूरा हो जाने का संकल्प किया जाता है जिसमे यह कहा जाता है कि मुख्य पंडित ने अपने सहायक अमुक पंडितों की सहायता से इस मंत्र की 10,000 संख्या का जाप निर्धारित विधि तथा निर्धारित समय सीमा में सभी नियमों का पालन करते हुए किया है तथा यह सब उन्होंने अपने यजमान अर्थात जातक के लिए किया है जिसने जाप के शुरू होने से लेकर अब तक पूर्ण निष्ठा से पूजा के प्रत्येक नियम की पालना की है तथा इसलिए अब इस पूजा से विधिवत प्राप्त होने वाला सारा शुभ फल उनके यजमान को प्राप्त होना चाहिए। इस संकल्प के पश्चात पंडित अपने जातक के लिए निम्न बुध वेद मंत्र का जाप करना शुरू कर देते हैं
“ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:।”
निश्चित किए गए दिन पर जाप पूरा हो जाने पर इस जाप तथा पूजा के समापन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जो लगभग 2 से 3 घंटे तक चलता है।
इस समापन पूजा के चलते बुधग्रह से संबंधित कुछ विशेष वस्तुओं का दान किया जाता है जो विभिन्न जातकों के लिए भिन्न भिन्न हो सकता है तथा इन वस्तुओं में सामान्यतया चावल, गुड़, चीनी, नमक, गेहूं, दाल, खाद्य तेल, सफेद तिल, काले तिल, जौं तथा कंबल इत्यादि का दान किया जाता है। इस पूजा के समापन के पश्चात उपस्थित सभी देवी देवताओं का आशिर्वाद लिया जाता है तथा तत्पश्चात हवन की प्रक्रिया शुरू की जाती है जो जातक तथा पूजा का फल प्रदान करने वाले देवी देवताओं अथवा ग्रहों के मध्य एक सीधा तथा शक्तिशाली संबंध स्थापित करती है। औपचारिक विधियों के साथ हवन अग्नि प्रज्जवल्लित करने के पश्चात तथा हवन शुरू करने के पश्चात बुध वेद मंत्र का जाप पुन: प्रारंभ किया जाता है तथा प्रत्येक बार इस मंत्र का जाप पूरा होने पर स्वाहा: का स्वर उच्चारण किया जाता है जिसके साथ ही हवन कुंड की अग्नि में एक विशेष विधि से हवन सामग्री डाली जाती है बुध वेद मंत्र की हवन के लिए निश्चित की गई जाप संख्या के पूरे होने पर कुछ अन्य महत्वपूर्ण मंत्रों का उच्चारण किया जाता है तथा प्रत्येक बार मंत्र का उच्चारण पूरा होने पर स्वाहा की ध्वनि के साथ पुन: हवन कुंड की अग्नि में हवन सामग्री डाली जाती है।
बुध पूजा के आरंभ होने से लेकर समाप्त होने तक पूजा करवाने वाले जातक को भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इस अवधि के भीतर जातक के लिए प्रत्येक प्रकार के मांस, अंडे, मदिरा, धूम्रपान तथा अन्य किसी भी प्रकार के नशे का सेवन निषेध होता है अर्थात जातक को इन सभी वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जातक को इस अवधि में अपनी पत्नि अथवा किसी भी अन्य स्त्री के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिएं। इसके अतिरिक्त जातक को इस अवधि में किसी भी प्रकार का अनैतिक, अवैध, हिंसात्मक तथा घृणात्मक कार्य आदि भी नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जातक को प्रतिदिन मानसिक संकल्प के माध्यम से बुध पूजा के साथ अपने आप को जोड़ना चाहिए तथा प्रतिदिन स्नान करने के पश्चात जातक को इस पूजा का स्मरण करके यह संकल्प करना चाहिए।तथा इस पूजा का विधिवत और अधिकाधिक शुभ फल उसे प्राप्त होना चाहिए। ऐसा करने से जातक मानसिक रूप से बुध पूजा के साथ जुड़ जाता है तथा जिससे इस पूजा से प्राप्त होने वाले फल और भी अधिक शुभ हो जाते हैं। यह बात ध्यान देने योग्य है कि बुध पूजा जातक की अनुपस्थिति में भी की जा सकती है तथा जातक के व्यक्तिगत रूप से उपस्थित न होने की जातक के नाम, उसके पिता के नाम तथा उसके गोत्र आदि का प्रयोग करके जातक के लिए इस पूजा का संकल्प किया जाता है। इस संकल्प में यह कहा जाता है कि जातक किसी कारणवश इस पूजा के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में सक्षम नहीं है जिसके चलते पूजा करने वाले पंडितों में से ही एक पंड़ित जातक के लिए जातक के द्वारा की जाने वाली सभी प्रक्रियाओं पूरा करने का संकल्प लेता है तथा उसके पश्चात पूजा के समाप्त होने तक वह पंडित ही जातक की ओर से की जाने वाली सारी क्रियाएं करता है जिसका पूरा फल संकल्प के माध्यम से जातक को प्रदान किया जाता है। व्यक्तिगत रूप से अनुपस्थित रहने की स्थिति में भी जातक को बुध पूजा के आरंभ से लेकर समाप्त होने की अवधि तक पूजा के लिए निश्चित किये गए नियमों का पालन करना होता है भले ही जातक संसार के किसी भी भाग में उपस्थित हो। इसके अतिरिक्त जातक को ऊपर बताई गई विधि के अनुसार अपने आप को इस पूजा के साथ मानसिक रूप से संकल्प के माध्यम से जोड़ना भी होता है जिससे इस बुध पूजा के अधिक से अधिक शुभ फल जातक को प्राप्त हो सकें।