saptamasth grah evan vivaah vilamb yog - sahee rudraaksh pahanakar karen kaalasarp dosh nivaaran

सप्तमस्थ ग्रह एवं विवाह विलम्ब योग – सही रुद्राक्ष पहनकर करें कालसर्प दोष निवारण – सत्रहवाँ दिन – Day 17 – 21 Din me kundli padhna sikhe – saptamasth grah evan vivaah vilamb yog – sahee rudraaksh pahanakar karen kaalasarp dosh nivaaran – Satrahavaan Din

जैसे मयूरों के शिखा और नागों का मणि शिरोभूषण है वैसे ही वेदाग शास्त्रों (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरक्त, छन्द और ज्योतिष) में ज्योतिष शिरोभूषण है।

मानव जीवन की प्रत्येक निमिष को किसी न किसी का अनुग्रह प्राप्त है।

इस अनिवार्य अनुभव को शब्द सम्भव और विवेक सम्मत बनाकर भारतीय ऋषि मुनियों ने जन्मांक चक्र की परिकल्पना की नन्मंक चक्र का प्रत्येक भाव कुछ विशिष्ट तथ्यों का नइयामन करता है। सप्त भाव जन्मांक चक्र का मध्यवर्ती भाव है शत्रु भाव में क्रूर सम्पुट में स्थित यह भाव काम कलित तथा वासना वलयित भावों अनुभवों संबंधों रहस्यों की वैकृतिक स्मिता और सामाजिकता की विवेचना का मूल स्थान है।

एक नजर सप्तमस्थ ग्रहों पर डालें

सूर्य

जिसके जन्म समय में लग्न से सप्तम में सूर्य स्थित हो तो इसमें स्त्रियों का तिरस्कार प्राप्त होता है। सूर्य की सप्तम भाव में स्थिति सर्वाधिक वैवाहिक जीवन एवं चरित्र को प्रभावित करता है। सूर्य अग्निप्रद ग्रह होता है।जिसके कारण जातक के विवेक तथा वासना पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता है।

चन्द्रमा

सप्तम भाव मे चन्द्रमा हो तो मनुष्य नम्र विनय से वश में आने वाला सुखी सुन्दर और कामुक होता है और चन्द्र यदि हीन वाली हो तो मनुष्य दीन और रोगी होता है।

भौम

सप्त्मस्थ मंगल की स्थिति प्रायः आचार्यों ने कष्ट कर बताया सप्तम भाव में भौम होने से पत्नी की मृत्यु होती है। नीच स्त्रियों से कामानल शांत करता है। स्त्री के स्तन उन्नत और कठिन होते हैं। जातक शारीरिक दृष्टि से प्रायः क्षीण, रुग्ण, शत्रुवों से आक्रांत तथा चिंताओं में लीं रहता है।

बुध

जिस मनुष्य के जन्म समय मे बुध सप्तम भाव मे हो वह सम्भोग में अवश्य शिथिल होता है। उसका वीर्य निर्बल होता है। वह अत्यन्त सुन्दर और मृगनैनी स्त्री का स्वामी होता है यदि बुध अकेला हो तो मन को मोहित करने वाली सुवर्ण के समान देदीप्यमान कान्ति होती है।

जीव

जिस जातक के जन्म समय में जीव सप्तम भाव में स्थित हो वह स्वभाव से नम्र होता है। अत्यन्त लोकप्रिय और चुम्बकीय व्यक्ति का स्वामी होता है उसकी भार्या सत्य अर्थों में अर्धांगिनी सिद्ध होती है तथा विदुषी होती है। इसे स्त्री और धन का सुख मिलता है। यह अच्छा सलाहकार और काव्य रचना कुशल होता है।

शुक्र

जिस जातक के जन्म समय में शुक्र सप्तम भाव हो उसकी स्त्री गोरे रंग की श्रेष्ठ होती है। जातक को स्त्री सुखा मिलता है गान विद्द्या में निपुण होता है, वाहनों से युक्त कामुक एवं परस्त्रियों में आसक्त होता है विवाह का कारक ग्रह शुक्र है। सिद्धांत के तहत कारक ग्रह कारक भाव के अंतर्गत हो तो स्थिति को सामान्य नहीं रहने देता है इसलिए सप्तम भाव में शुक्र दाम्पत्य जीवन में कुछ अनियमितता उत्पन्न करता है ऐसे जातक का विवाह प्रायः चर्चा का विषय बनता है।

शनि

सप्तम भाव में शनि का निवास किसी प्रकार से शुभ या सुखद नहीं कहा जा सकता है। सप्तम भाव में शनि होने से जातक का शरीर दोष युक्त रहता है। (दोष का तात्पर्य रोग से है) उसकी पत्नी क्रिश होती है जातक वेश्यागामी एवं दुखी होता है। यदि शनि उच्च गृही या स्वगृही हो तो जातक अनेक स्त्री का उपभोग करता है यदि शनि भौम से युक्त हो तो स्त्री अत्यन्त कामुक होती है उसका विवाह अधिक उम्र वाली स्त्री के साथ होता है।

राहु

जिस जातक के जन्म समय मे राहु सप्तम भावगत हो तो उसके दो विवाह होते हैं। पहली स्त्री की मृत्यु होती है दूसरी स्त्री को गुल्म रोग, प्रदर रोग इत्यादि होते हैं। एवं जातक क्रोधी, दूसरों का नुकसान करने वाला, व्यभिचारी स्त्री से सम्बन्ध रखने वाला गर्बीला और असंतुष्ट होता है।

केतु

यदि सप्तम भाव में केतु हो तो जातक का अपमान होता है। स्त्री सुख नहीं मिलता स्त्री पुत्र आदि का क्लेश होता है। खर्च की वृद्धि होती है रजा की अकृपा शत्रुओं का डर एवं जल भय बना रहता है। वह जातक व्यभिचारी स्त्रियों में रति करता है।

वैवाहिक विलम्ब के योग

विवाह एक संश्लिष्ट और बाहू आयामी संस्कार है। इसके सम्बन्ध में किसी प्रकार के फल के लिए विस्तृत एवं धैर्यपूर्व अध्ययन मनन- चिंतन की अनिवार्यता होती है किसी जातक के जन्मांग से विवाह संबंधित ज्ञान प्राप्ति के लिए द्द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं द्वादश भावों का विश्लेषण करना चाहिए। आज के वर्तमान समय में कन्याओं का विवाह विशेष रूप से समस्या पूर्ण बन गया है। अनेकानेक कन्याओं की वरमाला उनके हाथों ही मुरझा जाती है अर्थात उनका परिणय तब सम्पन्न होता है जब उनके जीवन का ऋतुराज पत्र पात के प्रतीक्षा में तिरोहित हो जाता है वैवाहिक विलम्ब के अनेक कारण हो सकते हैं। जैसे आर्थिक विषमता, शिक्षा की स्थिति, शारीरिक संयोजन, मानसिक संस्कार, ग्रहों की स्थिति इत्यादि। आइये हम ज्योतिष का माध्यम से कुछ योगों का अध्ययन चिंतन करें

1. शनि और मंगल यदि लग्न में या नवांश लग्न से सप्तमस्थ हो तो विवाह नहीं होता विशेषतः लग्नेश और सप्तमेश के बलहीन होने पर।

2. यदि मंगल और शनी, शुक्र और चन्द्रमा से सप्तमस्थ हो तब विवाह विलम्ब से होता है।

3. शनि और मंगल यदि षष्ठ और अष्टम भावगत हो तो भी विवाह में विलम्ब होता है।

4. यदि शनि और मंगल में से कोई भी ग्रह द्वितीयेश अथवा सप्तमेश हो और एक दुसरे से दृष्ट से तो विवाह में विलम्ब होता है।

5. यदि लग्न, सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र स्थिर राशिगत हों एवं चन्द्रमा चर राशि में हो तो विवाह विलम्ब से होता है।

6. यदि द्वितीय भाव में कोई वक्री ग्रह स्थित हो या द्वितीयेश स्वयं वक्री हो तो भी विवाह में विलम्ब होता है।

7. यदि द्वितीय भाव पापग्रस्त हो तथा द्वितीयेश द्वादश्थ हो तब भी विवाह विलम्ब से होता है।

8. पुरुषों की कुण्डली में सूर्य मंगल अथवा चन्द्र शुक्र की सप्तम भाव की स्थिति यदि पापाक्रांत हो तो भी विवाह में विलम्ब होता है।

8. राहू और शुक्र के लग्नस्थ होने पर भी विवाह में विलम्ब होता है।

10. यदि सप्तम बी हव का स्वामी त्रिक (6, 8, 12) भाव में स्थित या त्रिक भाव का स्वामी सप्तम भाव में स्थित हो तो विवाह में अत्यन्त विलम्ब होता है।

11. यदिलाग्नेश और शुक्र वन्ध्या राशिगत हो (मिथुन, सिंह, कन्या एवं धनु) तो भी विवाह में विलम्ब होया है।

सप्तमस्थ ग्रह एवं विवाह विलम्ब योग – सही रुद्राक्ष पहनकर करें कालसर्प दोष निवारण – saptamasth grah evan vivaah vilamb yog – sahee rudraaksh pahanakar karen kaalasarp dosh nivaaran – सत्रहवाँ दिन – Day 17 – 21 Din me kundli padhna sikhe – Satrahavaan Din

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