यदि जन्मकुंडली में मंगल दोष हो किन्तु शनि मंगल पर दृष्टिपात करे तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है। मकर लग्न में मकर राशि का मंगल व सप्तम स्थान में कर्क राशि का चंद्र हो तो मंगल दोष नहीं रहता है।
कर्क व सिंह लग्न में भी लग्नस्थ मंगल केन्द्र व त्रिकोण का अधिपति होने से राजयोग देता है, जिससे मंगल दोष निरस्त होता है। लग्न में बुध व शुक्र हो तो मंगल दोष निरस्त होता है। मंगल अनिष्ट स्थान में है और उसका अधिपति केद्र व त्रिकोण में हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि आयु के 28वें वर्ष के पश्चात मंगल दोष क्षीण हो जाता है। आचार्यों ने मंगल-राहु की युति को भी मंगल दोष का परिहार बताया है। यदि मंगल मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
कुण्डली मिलान में यदि मंगल चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में हो व द्वितीय जन्मकुंडली में इन्हीं भावों में से किसी में शनि स्थित हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है। चतुर्थ भाव का मंगल वृष या तुला का हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
द्वादश भावस्थ मंगल कन्या, मिथुन, वृष व तुला का हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है। वर की कुण्डली में मंगल दोष है व कन्या की जन्मकुण्डली में मंगल के स्थानों पर सूर्य, शनि या राहु हो तो मंगल दोष का स्वयमेव परिहार हो जाता है।