आज की भाग-दौड़ भरी और तनावपूर्ण जिंदगी में लोग यही चाहते हैं कि घर में उन्हें वह सारा सुकून मिले जिसकी उन्हें आशा है। जब भी घर सजाने की बात होती है तो हमें अलग-अलग तरह की वस्तुओं का ध्यान आता है पर आजकल इतना ही काफी नहीं है। यही वजह है कि लोग वास्तु का महत्व जानने लगे हैं।
दरअसल वास्तु के अंतर्गत कुछ ऐसी बातों का समावेश है जिससे हमारी जिंदगी में पॉजिटीविटी आने लगती है।
– शयनकक्ष में मोटा कालीन बिछाना चाहिए। कालीन घर में ऊर्जा तापमान , रंगों व परिदृश्य को संतुलित व अवलोकित करते है। बैठकों और भोजन कक्षो को कालीनों से पूरा ढकना वास्तु के अनुसार सही नहीं है। – घर की सजावट पर्दे की भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। हल्के रंगों के पर्दे अधिक प्रकाश परावर्तित करते हैं। बैठक के कमरे में सकारात्मक उर्जा का स्तर बढ़ जाए इसलिए बैठक के कमरे में हमेशा हल्के रंग के परदे ही लगाए।
– शयनकक्ष में पर्दे उतने ही मोटे रखें, ताकि आवश्कता पडऩे पर एकदम से बाहरी प्रकाश अंदर आने से रोका जा सके।
– स्वास्तिक चिन्ह, लक्ष्मी गणेश के चिन्हों वाले स्टिकर या अपने धर्म के शुभ संकेतों को लगाएँ।
– ड्राइंग रूम में फर्नीचर लकड़ी का ही होना अच्छा माना जाता है। यह भी ध्यान रहे कि फर्नीचरों के कोने तीखे तथा नुकीले न होकर के गोल या चिकने होने चाहिए। तीखे कोने नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माने जाते हैं।
– बच्चों के कमरे का रंग नीला बैंगनी या हरा होना चाहिए। टेबल इस तरह से लगी होनी चाहिए कि पढऩे वाले का मुँह पूर्व या उत्तर में रहे तथा पीठ की ओर दीवार होनी चाहिए। इस कमरे में विद्या का वास होता है अत: बच्चों को जूते-चप्पल बाहर रखने की सलाह दें।
– सुन्दर लिखावट में लिखे कुछ मंत्र घर में सजाना बहुत शुभ माना जाता है।
– दर्पण प्राण उर्जा को सक्रीय करने के लिए घरों की सजावट में दर्पण का बहुमुल्य योगदान है। ये अनियमित आकार के कमरों को संतुलित करने या दुष्प्रभावो को दुर करने के लिए प्रयोग में लाते है। प्राकृतिक प्रकाश को अधिक से अधिक अंदर लाने के लिए इन्हें खिड़की के पास लगाना चाहिए।
घर का बिगड़ा वास्तु भी हो जाएगा ठीक… रसोईघर में अग्नितत्व, दिशा के स्वामी व काम आने वाली चीजों के सही रखरखाव का तालमेल हो जाए, तो घर का बिगड़ा वास्तु भी ठीक हो सकता है।
केवल जरूरत है तो सिर्फ इन छोटे-छोटे वास्तुटिप्स को ध्यान में रखने की।
– खाना खाते समय गृहिणी की पीठ किचन के दरवाजे कि तरफ नहीं होना चाहिए। अन्यथा अशुभ ऊर्जा के प्रभाव से गृहिणी को कमरदर्द का सामना करना पड़ सकता है।
– फेंगशुई के अनुसार किचन में रखा चूल्हा भवन के मुख्य द्वार प्रवेश करते समय दिखना नहीं चाहिए।
– अग्रि व जल एक दूसरे के विरोधी तत्व है। इसलिए किचन में चूल्हे कि स्थिति सिंक या फ्रिज के सामने नहीं होना चाहिए।
– फेंगशुई के अनुसार किचन में रखा चूल्हा, भवन के मुख्य द्वार में प्रवेश करते समय नहीं दिखना चाहिए। उत्तर दिशा में रसोई और पूर्व दिशा में दरवाजा बंद होने पर भी ऊर्जा असंतुलित हो जाती है। पूर्व का दरवाजा खोल देने और किचन दक्षिण- पूर्व में कर देने से ऊर्जा का प्रवाह नियमित और संतुलित हो जाता है।
– किचन खुला और हवादार होना चाहिए। किचन में प्रवेश द्वार मुख्यद्वार के सामने होना चाहिए।
– किचन में चूल्हे और सिंक पास ना रखें। अगर ऐसो करना संभव नहीं है, तो सिंक चूल्हे एक क्रिस्टल बॉल लटका दें। पूरे घर में ऊर्जा प्रवाहित हो सके इसके लिए किचन को आग्रेय कोण में स्थान दें। अगर दक्षिण पश्चिम की ओर मुंह है तो घर की सुख-शांति पूरी तरह से भंग हो जाएगी।
– पश्चिम की ओर मुंह करके भोजन पकाने से त्वचा व हड्डी संबंधी रोग हो सकते हैं यदि उत्तर की ओर मुंह करके भोजन पकाया जाए तो आर्थिक हानि होने का भय रहता है।
– फेंगशुई में जल का रंग काला होता है। चूल्हा रखने का प्लेटफार्म काले रंग का नहीं होना चाहिए।
ऐसा हो घर तो निश्चित है भाग्योदय यदि कोई घर वास्तु के अनुसार बना हो तो आप अधिक ऊर्जावान बन सकते हैं। यह सकारात्मक ऊर्जा काम के साथ ही भाग्योदय में भी सहायक होती हैं। वास्तु के अनुसार ऐसा माना जाता है कि यदि घर का हर एक कोना वास्तु अनुरूप हो तो घर में आने वाले हर व्यक्ति को बहुत मानसिक शांति महसुस होती है और घर में रहने वाले हर सदस्य की तरक्की होती है।
– पूर्व दिशा ऐश्वर्य व ख्याति के साथ सौर ऊर्जा प्रदान करती हैं। अत: भवन निर्माण में इस दिशा में अधिक से अधिक खुला स्थान रखना चाहिए। इस दिशा में भूमि नीची होना चाहिए। दरवाजे और खिडकियां भी पूर्व दिशा में बनाना उपयुक्त रहता हैं। बरामदा, बालकनी और वाशबेसिन आदि इसी दिशा में रखना चाहिए। बच्चे भी इसी दिशा में मुख करके अध्ययन करें तो अच्छे अंक अर्जित कर सकते हैं।
– पश्चिम दिशा में टायलेट बनाएं यह दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा हैं अत: इसे अधिक से अधिक बंद रखना चाहिए। ओवर हेड टेंक इसी दिशा में बनाना चाहिए। भोजन कक्ष भी इसी दिशा में होना चाहिए।
– उत्तर दिशा से चुम्बकीय तरंगों का भवन में प्रवेश होता हैं। चुम्बकीय तरंगे मानव शरीर में बहने वाले रक्त संचार एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से इस दिशा का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। स्वास्थ्य के साथ ही यह धन को भी प्रभावित करती हैं। इस दिशा में निर्माण करते समय विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं। उत्तर दिशा में भूमि रूप से नीची होना चाहिए तथा बालकनी का निर्माण भी इसी दिशा में करना चाहिए।
– उत्तर-पूर्व दिशा में देवताओं का निवास होने के कारण यह दिशा दो प्रमुख ऊजाओं का समागम हैं। उत्तर दिशा और पूर्व दिशा दोनों इसी स्थान पर मिलती हैं। अत इस दिशा में चुम्बकीय तरंगों के साथ-साथ सौर ऊर्जा भी मिलती हैं। इसलिए इसे देवताओं का स्थान अथवा ईशान दिशा कहते हैं।
– घर का मुख्य द्वार इसी दिशा में शुभकारी होता हैं। उत्तर-पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष बनाएं यह दिशा वायु का स्थान हैं। अत: भवन निर्माण में गोशाला, बेडरूम और गैरेज इसी दिशा में बनाना हितकर होता है। सेवक कक्ष भी इसी दिशा में बनाना चाहिए।
– दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुखिया का कक्ष सबसे अच्छा वास्तु नियमों में इस दिशा को राक्षस अथवा नैऋत्व दिशा के नाम से संबोधित किया गया हैं। परिवार के मुखिया का कक्ष परिवार के मुखिया का कक्ष इसी दिशा में होना चाहिए। सीढिय़ों का निर्माण भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में खुलापन जैसे खिड़की, दरवाजे आदि बिल्कुल न निर्मित करें। किसी भी प्रकार का गड्ढा, शौचालय अथवा नलकूप का इस दिशा में वास्तु के अनुसार वर्जित हैं। दक्षिण-पूर्व दिशा में किचिन, सेप्टिक टेंक बनाना उपयुक्त होता है। यह दिशा अग्नि प्रधान होती हैं। घर में नहीं होगी धन-धान्य की कमी घर में रखा गया हर सामान घर के वास्तु और हमारी विचारधारा को भी किसी ना किसी रुप में प्रभावित करता है।
यदि घर का वास्तु ठीक हो तो किसी भी तरह की कोई कमी नहीं होती घर हमेशा धनधान्य से भरा रहता है।
– सामान्य तौर पर शुभ दिशा उत्तर है। ईशान कोण ऊर्जा का बेहतर क्षेत्र है। यह स्थान खुला निर्माण रहित व साफ -सुथरा होना चाहिए क्योंकि यहां से प्रवाहित होने वाली ऊर्जा पूरे घर को ऊर्जामय रखती है।
– ईशान कोण में भूलकर भी झाड़ू ना रखें।
– दक्षिण दिशा हल्की व खाली होने पर घर में ऊर्जा का संतुलन बिगड़ जाता है।
– भवन में भारी संदूक, सोफासेट , अलमारी , भारी समान का स्टोर दक्षिण- पश्चिम दिशा में रखें।
– पलंग का किनारा दक्षिण दिशा में करें। ऊर्जा संतुलन के लिए आवश्यक है। घर के धरातल का ढलान उत्तर-पूर्व व ईशान्य कोण की तरफ रखें।
– उत्तर और पूर्व दिशा नीची हल्की व खुली रखने से सूर्य का प्रकाश पूर्व से पश्चिम और चुंबकीय धाराएं उत्तर से दक्षिण बिना किसी बाधा के बहती है। धनधान्य की कमी नहीं होती।
– घर में अगर कोई बीमार हो तो उसे नेऋत्य कोण में सुलाएं।
– उत्तर- पूर्व की ओर मुंह करके पानी-पीने से पर्याप्त ऊर्जा भोजन को ऊर्जावान करके स्वास्थ्य को बहुत लाभ पहुंचाती है।
– अच्छी ऊर्जा के लिए घर के कोनों को खाली और साफ-सुथरा रखना चाहिए।
तब घर में मिलेगा सुकून – tab ghar mein milega sukoon – वास्तु और सकारात्मक ऊर्जा – vastu aur sakaratmak oorja