ॐ अस्य श्री ऋण हरणकर्ता गणपति स्तोत्र मंत्रस्य सदाशिव ऋषि:, अनुष्टुप छन्द: श्री ऋण हरणकर्ता गणपति देवता, ग्लौं बीजम्, ग: शक्ति:, गौं कीलकम् मम सकल ऋण नाशने जपे विनियोग: (जल छोड़ दें)
ऋषियादि न्यास-
ॐ सदाशिव ऋषिये नम: शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नम: मुखे, श्री ऋणहर्ता गणेश देवतायै नम: हृदि, ग्लौं बीजाय नम: गुह्ये, ग: शक्तये नम: पादयो:, गौं कीलकाय नम: नाभौ विनियोगाय नम: सर्वांगे।
करन्यास-
श्री गणेश अंगुष्ठाभ्यां नम:, ऋणं छिन्दि तर्जनीभ्यां नम:, वरेण्यं मध्यमाभ्यां नम:। हुम् अनामिकाभ्यां नम:। नम: कनिष्ठिकाभ्यां नम:, फट् करतल कर पृष्ठाभ्यां नम: (निर्देशित अंग को छुएं)।
हृदयादि न्यास :
ॐ गणेश हृदयाय नम:, ऋणं छिन्दि शिरसे स्वाहा, वरेण्यं शिखायै वषट्, हुम् कवचाय हुम्, नम: नैत्रत्रयाय वौषट फट् अस्त्राय फट्।
निर्दिष्ट अंग को छूकर ध्यान करें तथा माला का पूजन कर जप करें।
स्मरणीय रहे कि संकल्प लेना है। किसी भी कार्य के लिए संकल्प लेना अनिवार्य है। विधान का पालन करें।
एक लाख जप कर दशांश हवन करें। हवन मधुत्रय (घृत-मधु-शर्करा) से करने से दारिद्रय का नाश होकर सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।