भारतीय प्राचीन विद्याओं में जिन विषयों से सम्बंधित पुस्तकों के प्रति जनसामान्य भी लालायित रहता है, इंद्रजाल उनमें से एक है. इंद्रजाल में दत्तात्रेय द्वारा भगवान शिव से प्राप्त तंत्र-मंत्र-यंत्र का गुप्त दुर्लभ ज्ञान संकलित किया गया है. इंद्रजाल में संकलित तंत्र-मन्त्र आदि कामना पूर्ति कारक प्रयोगों के उत्कीलन की आवश्यकता नहीं होती. दत्तात्रेय तंत्र में कहा गया है कि
ब्राहमण काम क्रोध वश रहेऊ,
त्याहिकरण सब कीलित भयऊ,
कहौ नाथ बिन कीलेमंत्रा,
औरहु सिद्व होय जिमितंत्रा.
देखा जाये तो इंद्रजाल तंत्र के षटकर्मों जैसे शांति कर्म, वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन एवं मारण कर्मों में किये जाने वाले विविध प्रकार के तंत्र-मंत्र-यंत्र से सम्बंधित प्रयोगों का विवरण दिया गया है. अलग-अलग लेखकों एवं प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित इंद्रजाल नामक पुस्तक में शिव-दत्तात्रेय वार्ता के दौरान भगवान शिव द्वारा बताये गए तांत्रिक प्रयोगों का समावेश भी किया गया है. इंद्रजाल को कौतुक रत्न कोष भी माना जाता है. क्योंकि इंद्रजाल में दिए गए प्रयोग आश्चर्यजनक परिणाम प्रदान करते हैं. तंत्र-मंत्र प्रयोगों के अतिरिक्त इंद्रजाल में रसायन शास्त्र, औषधि विज्ञान, चमत्कार दिखाने वाले खेल भी दिए गए हैं. हाथ की सफाई से किये जाने वाले जादू के खेलों का संकलन भी इंद्रजाल में किया गया है. इंद्रजाल में औद्योगिक उपयोग के नुस्खे भी बताये गए हैं. इंद्रजाल के कुछ कौतुक प्रयोगों के नाम आगे दिए जा रहे हैं. जैसे :- एक घंटे में पेड़ लगाना, नींबू से खून निकालना, अंडे को बोतल में डालना, अंडे का स्वत: उछलना, छलनी में पानी भरना, अग्नि से वस्त्र न जलना आदि रोचक एवं विस्मय उत्पन्न करने वाले प्रयोगों का विवरण दिया गया है. इसके अतिरिक्त नजर दोष निवारण के लिए भी अनेक प्रभावशाली प्रयोगों, एवं झाड़े आदि का विवरण दिया गया है. इंद्रजाल में यक्षिणी सिद्वि के बारे में भी विस्तार से बताया गया है. विभिन्न प्रकार की यक्षिणियां किस प्रकार की विशेषता से युक्त होती है तथा प्रसन्न होने पर साधक को किस प्रकार से लाभ पहुंचाती है, इसका विवरण भी इंद्रजाल में दिया गया है.