अघोर को काला जादू, भूत प्रेत साधक , व्यसनी और धन लोलुप कहने वाले अघोर पंथ की महत्ता को जानने में भ्रामित हो गए हैं।
काला जादू करने वाले हजार तांत्रिक आपको संसार में मिलेंगे जो तरह तरह के टोटको को दिखा के डरा के धमका के पैसे कमाते हैं। पर सच्चा अघोरी पैसे नहीं मांगता ।
क्यूंकि वो संग्रह कर ही नहीं सकता है । संग्रह करने वाले अघोर नामधारी छलियो के पास महाकाल महाकाली की कृपा कभी नहीं होती है ।
श्मशान में रहने वाले साधक जरुरी नहीं की भूतों को पूजेंगे ।भूत , पिशाच् राक्षस पिशाचिनी पलितिनी के बीच में रह कर साधना कर पाना वीर मार्गी साधना है।
प्रेत हमारे मित्र होते हैं , पितृ देव (गुरु , पूर्वज ) हमारी रक्षा , साधना में सहयोग और सफलता का मार्ग दिखाते हैं ।”गोस्वामी तुलसी दास को हनुमान जी के बारे में कि राम कथा में सबसे पहले आने वाले और सबसे अन्त में जाने वाले हनुमान जी ही हैं।” बताने वाला एक प्रेत ही था ।
हर व्यक्ति के आस पास प्रेत होते हैं जो हमें आकस्मिक घटनाओ से अवगत कराते हैं ।
व्यसन- अघोर अगर चिलम लगाता है तो वो उसे व्यसन नहीं बनाता, खप्पर में सूरा पान करता है तो शोधित सूरा का पान करता है । सुरा के नशे में गिरता पड़ता नहीं रहता ।
एक मनुष्य का मस्तिष्क इतना विकसित होता है कि कौन अघोर और कौन छलावा है इसका भान कर लेता है ।
अगर मनुष्य इसका भान न कर पाए तो फिर भगवान् ही मालिक है उनका