मुर्दों के आसपास अपना डेरा जमाए, श्मशान भूमि को अपना घर समझने वाले अघोरियों के बारे में सब जानते हैं. ऐसा माना जाता है कि इनके पास कुछ तांत्रिक शक्तियां होती हैं जिसकी सहायता से वे हर वो काम कर सकते हैं जो वो करना चाहते हैं. आत्माओं को बुलाना हो या उन्हें अपना दास बनाकर उनसे अपनी सेवा करवाना हो, अघोरी हर काम करने में सक्षम होते हैं. मृत शरीर को अपने फायदे के लिए प्रयोग करने वाले इन अघोरियों को प्राय: जीवन के अंतिम पड़ाव में श्मशान घाट में ही पाया जाता है. जब सारी दुनिया गहरी नींद में होती हैं तब यह अघोरी तंत्र साधना में लीन होते हैं, अपने इष्ट देव को मनाने और उससे शक्तियां प्राप्त करने की तमाम कोशिशें कर रहे होते हैं. अघोरी ही नहीं तमाम ऐसे अन्य लोग भी होते हैं जो दिन ढल जाने के बाद तांत्रिक क्रियाओं में लिप्त हो जाते हैं.
असम, जिसे कभी कामरूप प्रदेश के नाम से भी जाना जाता था, ऐसा ही एक स्थान है जहां रात के अंधेरे में शमशाम भूमि पर तंत्र साधना कर पारलौकिक शक्तियों का आह्वान किया जाता है. यहां होने वाली तंत्र साधनाएं पूरे भारत में प्रचलित हैं. यूं तो अभी भी कुछ समुदायों में मातृ सत्तात्मक व्यवस्था चलती है लेकिन कामरूप में इस व्यवस्था की महिलाएं तंत्र विद्या में बेहद निपुण हुआ करती थीं.
कामरूप से जुड़ी एक कथा स्थानीय लोगों में बेहद लोकप्रिय है, कहा जाता है कि एक बार बाबा आदिनाथ, जिन्हें कुछ लोग भगवान शंकर का भी अवतार मानते थे, के शिष्य मत्स्येंद्रनाथ कामरूप भ्रमण के लिए गए थे. वह वहां कामरूप की रानी के महल में बतौर अतिथि ठहरे थे. कामरूप की रानी खुद भी तंत्र साधना में सिद्ध मानी जाती थीं. मत्स्येन्द्र नाथ रानी के साथ लता साधना में इतना लीन हो गए कि सब कुछ भूल गए. उन्हें वापस अपने आश्रम जाना था वह उसे भी भूल गए. उन्हें लेने के लिए बाबा गोरखनाथ को कामरूप आना पड़ा. लेकिन तंत्र साधना में लीन मत्स्येन्द्र नाथ को हिला पाने में गोरखनाथ को भी कई पापड़ बेलने पड़े.
अघोरी इंसानी शरीर में वो व्यक्ति होते हैं जिन्हें इंसानों के ही साथ रहना पसंद नहीं होता, जिनका समाज से कोई भी लेना-देना नहीं होता. उनके लिए दुनिया की कोई बुराई बुरी नहीं होती और वह जो करते हैं उसी को अपना धर्म मानते हैं. वह आत्माओं और पारलौकिक दुनिया का स्वामी बनने के लिए घोर तपस्या करते हैं और एक बार तंत्र सिद्धि प्राप्त करने के बाद वह भविष्य, अतीत और भूतकाल से अच्छी तरह परिचित हो जाते हैं. वह अपनी इस विद्या से दूसरों का भला और बुरा दोनों कर सकते हैं. वह मुर्दे की खोपड़ी में खाना खाते हैं और लाशों को ही अपनी दुनिया समझते हैं. आम इंसान उन्हें देखकर जरूर डर जाता है लेकिन उनका बाहरी व्यक्तित्व ही उनकी एक बड़ी पहचान है, जो उन्हें कठोर तप करने की शक्ति देता है.