मानवीय जीवन में नक्षत्र का काफी महत्वपूर्ण स्थान है।ऐसी मान्यताएं है कि जिस व्यक्ति का जन्म जिस व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में होता है, उस क्षेत्र के पेड़ की पूजा करने से व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक स्थिति सुढ बनी रहती है, यही कारण है कि सदियों पहले जिस नई सभ्यता ने जिस पौराणिक मान्यताओं को त्याग दिया था, आधुनिक पीढ ी का विश्र्वास फिर से पुरानी मान्यताओं पर बढ ा है।
नक्षत्र को न सिर्फ भारतीय संस्कृति में काफी अहम स्थान दिया गया है, बल्कि कई विदेशी संस्कृतियों में भी नक्षत्र की महत्ता को स्वीकार किया गया है। जबकि इसे वैज्ञानिक ष्टिकोण से भी नक्षत्र की ग्रह-दशा निर्धारित करने के लिए मानचित्र बनाया गया है और किन नक्षत्रों की क्या स्थिति है,इसकी भी स्पष्ट व्याखया की गई है।
भारतीय हिन्दू संस्कृति में नक्षत्रों की गणना आदिकाल से ही की जाती रही। शब्दकोष के अनुसार- ‘नक्षत्र’ आकाश में तारा-समूह को कहते हैं। साधारणतः यह चंद्रमा के पथ से जुड े हैं, परंतु वास्तव में किसी भी तारा समूह को नक्षत्र कहना उचित है। ऋग्वेद में एक स्थान में सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है, अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य है, नक्षत्र सूची की विस्तृत जानकारी अर्थवेद, तैत्तिरीय, संहिता, शतपथ, ब्राह्मण और लगध के वेदाड्.ग ज्योतिष में मिलती है। इसके अनुसार २७नक्षत्रों अश्र्िवनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाख, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ ा, उत्तराषाढ ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवति और अभिजित का जिक्र विभिन्न वेद, पुराण व उपनिषद में मिलते है।
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