vedic sabhyata ke question answer

vaidik vastu shastra ka udbhav

वैदिक वास्तुशास्त्र का उदभव – वैदिक वास्तु शास्त्र – vaidik vastu shastra ka udbhav – vedic vastu shastra

'वैदिक शास्त्रों में वास्तु का अर्थ है गृह निर्माण योग्य भूमि! अर्थात् जिस भूमि पर अधिक सुरक्षा व सुविधा प्राप्त हो सके, इस प्रकार के मकान को भवन व महल आदि जिसमें मनुष्य रहते हैं या काम करते हैं वास्तु कहते है। इस ब्रह्मण्ड में सबसे शाक्तिशाली प्राकृति है क्योंकि यही सृष्टि का विकास करती […]

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vaidik vaas‍tushaas‍tr laksh‍mee pravesh kaise ho

वैदिक वास्‍तुशास्‍त्र लक्ष्‍मी प्रवेश कैसे हो – वैदिक वास्तु शास्त्र – vaidik vaas‍tushaas‍tr laksh‍mee pravesh kaise ho – vedic vastu shastra

सुखी और सफल जीवन महालक्ष्‍मी की कृपा के बिना संभव नहीं है! शेषशैया पर सोने वाले भगवान विष्‍णु की अर्धागिनी मां लक्ष्‍मी कैसे हमारे जीवन में सहजता व सफलता से सारी कमियां पूरी कर दें! यही बतलाती है वैदिक वास्‍तुशास्‍त्र पर दैवज्ञ शिरोमणि वास्‍तु इंजीनियर पंडित गोपाल शर्मा व नरसिंह लाल जी की यह अनुपम

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vaidik kal ke devta

वैदिक काल के देवता – वैदिक वास्तु शास्त्र – vaidik kal ke devta – vedic vastu shastra

एकशीतिपद वास्तु में जो कि सर्वाधिक प्रचलन में है, 45 देवता विराजमान रहते हैं! मध्य में 13 व बाहर 32 देवता निवास करते हैं, ईशान कोण से क्रमानुसार नीचे के भाग में शिरवी, पर्जन्य, जयन्त, इन्द्र, सूर्य, सत्य भ्रंश व अंतरिक्ष तथा अग्निकोण में अनिल विराजमान हैं! नीचे के भाग में पूषा, वितथ, वृहत, क्षत,

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vaidik kal darpan vaastu

वैदिक काल दर्पण वास्‍तु – वैदिक वास्तु शास्त्र – vaidik kal darpan vaastu – vedic vastu shastra

वातावरण में व्‍याप्‍त सकारात्‍म्‍क ऊर्जाओं का उपयोग एवं नकारात्‍मक ऊर्जाओं का प्रतिरोध ही वास्‍तु है! दर्पण के द्वारा भी इन ऊर्जाओं को प्राप्‍त किया जा सकता है! इस पुस्‍तक में दर्पणों के सकारात्‍मक एवं नकारात्‍मक उपयोगों का सचित्र वर्णन किया गया है सकारात्‍मक उपयोग जीवन में लाभकारी एवं नकारात्‍मक उपयोग हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं!

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vaidik kal kya hai vastu purush?

वैदिक काल क्या है वास्तुपुरुष? – वास्तुशास्त्र – vaidik kal kya hai vastu purush? – vastu shastra

वास्तु पुरुष की कल्पना भूखंड में एक ऐसे औंधे मुंह पड़े पुरुष के रूप में की जाती है, जिससे उनका मुंह ईशान कोण व पैर नैऋत्य कोण की ओर होते हैं। उनकी भुजाएं व कंधे वायव्य कोण व अग्निकोण की ओर मुड़ी हुई रहती है। देवताओं से युद्ध के समय एक राक्षस को देवताओं ने

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