संपूर्ण ज्योतिष ज्ञान

the only secret of vedic astrology is

वैदिक ज्योतिष का एकमात्र रहस्य है – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | The only secret of Vedic astrology is – vaidik jyotish Shastra

  भारतीय वैदिक ज्योतिष का एकमात्र रहस्य यह है कि यह शास्त्र चिरन्तन और जीवन से सम्बद्ध सत्य का विश्लेषण करता है. संसार के समस्त शास्त्र जहाँ जगत के किसी एक अंश का निरूपण करते हैं,वहीं वैदिक ज्योतिष शास्त्र आन्तरिक एवं बाह्य दोनों जगतों से सम्बंधित समस्त ज्ञेयों का प्रतिपादन करता है. इसका सत्य दर्शन […]

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poor yoga

दुर योग, दरिद्र योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Poor yoga – vaidik jyotish Shastra

  दुर योग तथा दरिद्र योग को वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली मे बनने वाले योगों में से अशुभ माना जाता है तथा अनेक वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि किसी कुंडली में इन दोनों योगों में से किसी योग के बन जाने से जातक के व्यवसाय तथा आर्थिक समृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

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auspicious yoga

शुभ योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Auspicious yoga – vaidik jyotish Shastra

  किसी कुंडली में किसी भी शुभ योग के बनने के लिए यह आवश्यक है कि उस योग का निर्माण करने वाले सभी ग्रह कुंडली में शुभ रूप से काम कर रहे हों क्योंकि अशुभ ग्रह शुभ योगों का निर्माण नहीं करते अपितु अशुभ योगों अथवा दोषों का निर्माण करते हैं। इसी आधार पर यह

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mention of famous nine departments

प्रसिद्ध नौ विभागों का उल्लेख – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Mention of famous nine departments – vaidik jyotish Shastra

  वैदिक काल में संवत शब्द वर्ष का वाचक था। संवत्सर इद्वत्सर इत्यादि ये संवत्सर के पर्यायवाची शब्द हैं। इसी आधार पर से सूर्य सिद्धांतकार ने काल गणना से प्रसिद्ध नौ विभागों का उल्लेख किया है:- “ब्राह्मं दिव्यं तथा पित्र्यं प्राजापत्यंच गौरवम। सौरं च सावनं चान्द्रमार्क्षं मानानि वै नव॥” इस प्रकार अवान्तर के ज्योतिषकाल में

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angarka yoga

अंगारक योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Angarka Yoga – vaidik jyotish Shastra

  अंगारक योग की वैदिक ज्योतिष में प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में मंगल का राहु अथवा केतु में से किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो ऐसी कुंडली में अंगारक योग का निर्माण हो जाता है जिसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता

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important yoga of vedic astrology

वैदिक ज्योतिष के महत्वपूर्ण योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Important Yoga of Vedic Astrology – vaidik jyotish Shastra

  वैदिक ज्योतिष में प्रचलित परिभाषा के अनुसार किसी कुंडली के किसी घर में जब सूर्य तथा बुध संयुक्त रूप से स्थित हो जाते हैं तो ऐसी कुंडली में बुध आदित्य योग का निर्माण हो जाता है तथा इस योग का शुभ प्रभाव जातक को बुद्धि, विशलेषणात्मक क्षमता, वाक कुशलता, संचार कुशलता, नेतृत्व करने की

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nakshatra in vedic period

वैदिक काल में नक्षत्र – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Nakshatra in Vedic period – vaidik jyotish Shastra

  वैदिक काल में नक्षत्र केवल चमकीले तारे या सुगमता से पहचाने जाने वाले छोटे तारे के पुंज थे,परन्तु आकाश में इनकी बराबर दूरी न होना एवं तारों का पुंज न रहने से बडी असुविधा रही होगी। इसके अतिरिक्त चन्द्रमा की जटिल गति भी कठिनाई से ज्ञात हुयी होगी। पूर्णिमा के के होने की सही

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chandra mangal yoga

चन्द्र मंगल योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Chandra Mangal Yoga – vaidik jyotish Shastra

  वैदिक ज्योतिष में चन्द्र मंगल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा तथा मंगल कुंडली के एक ही घर में स्थित हो जाते हैं तो ऐसी कुंडली में चन्द्र मंगल योग का निर्माण हो जाता है। चन्द्र मंगल योग द्वारा प्रदान किये जाने वाले फलों के लेकर विभिन्न ज्योतिषी भिन्न

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brain according to vedic astrology

वैदिक ज्योतिष अनुसार मस्तिष्क – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Brain according to vedic astrology – vaidik jyotish Shastra

  ईश्वर नें इस ब्राह्मंड को पूर्णतय: स्वचालित बनाया है। इसमे विधमान समस्त ग्रह अपने निश्चित मार्ग पर निश्चित गति से निरंतर भ्रमणशील रहते हैं। और भ्रमण के दौरान ये किसी व्यक्ति की जन्मकुडंली के जिस भाव में स्थित होते हैं. उसी से सम्बद्ध उस व्यक्ति के मस्तिष्क के भाग को प्रभावित करते हैं। ►

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there are 94 elements in the rigveda.

ऋग्वेद में 94अवयव कहे गये है – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | There are 94 elements in the Rigveda. – vaidik jyotish Shastra

  ऋग्वेद में 94अवयव कहे गये है तुर्भि: साकं नवति च नामभिश्चक्रं न वृतं व्यतीखींविपत। बृहच्छरीरो विमिमान ऋक्कभियुर्वाकुमार: प्रत्येत्याहवम॥ (ऋ.म.१.सू.१५५.म.६.) उक्त मंत्र में गति विशेष द्वारा विविध स्वभाव शाली काल के ९४ अंशों को चक्र की तरह वृत्ताकार कहा गया है। उक्त कालावयवों में १ सम्वतसर २ अयन ५ ऋतुयें १२ माह २४ पक्ष ३०

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