संपूर्ण ज्योतिष ज्ञान

paashchaatya deshon ki kundali

पाश्चात्य देशों की कुंडली – बारहवां दिन – Day 12 – 21 Din me kundli padhna sikhe – paashchaatya deshon ki kundali – Barahavaan Din

पाश्चात्य देशों में वृत्ताकार कुंडली बनाने का प्रचलन है। लग्न से आरंभ करने पर कुंडली बारह भावों में बंट जाती है। लग्न स्पष्ट को प्रथम भाव का आरंभ माना जाता है। लेकिन भारतीय पद्धति में लग्न स्पष्ट को प्रथम भाव का भाव मध्य माना जाता है। इसमें भावों को बांई ओर से क्रम से रखा […]

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rahu ka vaidik mantra - rahu ka prakop

राहु का वैदिक मंत्र – राहु के प्रकोप – आठवाँ दिन – Day 8 – 21 Din me kundli padhna sikhe – rahu ka vaidik mantra – rahu ka prakop – Aathavaan Din

राहु ग्रह सम्बन्धित पाठ पूजा आदि के स्तोत्र मंत्र तथा राहु गायत्री को पाठको की सुविधा के लिये यहां मै लिख रहा हूँ, वैदिक मंत्र अपने आप में अमूल्य है, इनका कोई मूल्य नही होता है, किसी दुखी व्यक्ति को प्रयोग करने से फ़ायदा मिलता है, तो मै समझूंगा कि मेरी मेहनत वसूल हो गयी

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rahu mantra ka viniyog - rahu ke prakop

राहु मंत्र का विनियोग – राहु के प्रकोप – आठवाँ दिन – Day 8 – 21 Din me kundli padhna sikhe – rahu mantra ka viniyog – rahu ke prakop – Aathavaan Din

ऊँ कया निश्चत्रेति मंत्रस्य वामदेव ऋषि: गायत्री छन्द: राहुर्देवता: राहुप्रीत्यर्थे जपे विनोयोग:॥ दाहिने हाथ में जाप करते वक्त पानी या चावल ले लें,और यह मंत्र जपते हुये वे चावल या पानी राहुदेव की प्रतिमा या यंत्र पर छोड दें। राहु मंत्र का विनियोग – राहु के प्रकोप – rahu mantra ka viniyog – rahu ke

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angarka yoga

अंगारक योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Angarka Yoga – vaidik jyotish Shastra

  अंगारक योग की वैदिक ज्योतिष में प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में मंगल का राहु अथवा केतु में से किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो ऐसी कुंडली में अंगारक योग का निर्माण हो जाता है जिसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता

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important yoga of vedic astrology

वैदिक ज्योतिष के महत्वपूर्ण योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Important Yoga of Vedic Astrology – vaidik jyotish Shastra

  वैदिक ज्योतिष में प्रचलित परिभाषा के अनुसार किसी कुंडली के किसी घर में जब सूर्य तथा बुध संयुक्त रूप से स्थित हो जाते हैं तो ऐसी कुंडली में बुध आदित्य योग का निर्माण हो जाता है तथा इस योग का शुभ प्रभाव जातक को बुद्धि, विशलेषणात्मक क्षमता, वाक कुशलता, संचार कुशलता, नेतृत्व करने की

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nakshatra in vedic period

वैदिक काल में नक्षत्र – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Nakshatra in Vedic period – vaidik jyotish Shastra

  वैदिक काल में नक्षत्र केवल चमकीले तारे या सुगमता से पहचाने जाने वाले छोटे तारे के पुंज थे,परन्तु आकाश में इनकी बराबर दूरी न होना एवं तारों का पुंज न रहने से बडी असुविधा रही होगी। इसके अतिरिक्त चन्द्रमा की जटिल गति भी कठिनाई से ज्ञात हुयी होगी। पूर्णिमा के के होने की सही

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chandra mangal yoga

चन्द्र मंगल योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Chandra Mangal Yoga – vaidik jyotish Shastra

  वैदिक ज्योतिष में चन्द्र मंगल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा तथा मंगल कुंडली के एक ही घर में स्थित हो जाते हैं तो ऐसी कुंडली में चन्द्र मंगल योग का निर्माण हो जाता है। चन्द्र मंगल योग द्वारा प्रदान किये जाने वाले फलों के लेकर विभिन्न ज्योतिषी भिन्न

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brain according to vedic astrology

वैदिक ज्योतिष अनुसार मस्तिष्क – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Brain according to vedic astrology – vaidik jyotish Shastra

  ईश्वर नें इस ब्राह्मंड को पूर्णतय: स्वचालित बनाया है। इसमे विधमान समस्त ग्रह अपने निश्चित मार्ग पर निश्चित गति से निरंतर भ्रमणशील रहते हैं। और भ्रमण के दौरान ये किसी व्यक्ति की जन्मकुडंली के जिस भाव में स्थित होते हैं. उसी से सम्बद्ध उस व्यक्ति के मस्तिष्क के भाग को प्रभावित करते हैं। ►

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there are 94 elements in the rigveda.

ऋग्वेद में 94अवयव कहे गये है – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | There are 94 elements in the Rigveda. – vaidik jyotish Shastra

  ऋग्वेद में 94अवयव कहे गये है तुर्भि: साकं नवति च नामभिश्चक्रं न वृतं व्यतीखींविपत। बृहच्छरीरो विमिमान ऋक्कभियुर्वाकुमार: प्रत्येत्याहवम॥ (ऋ.म.१.सू.१५५.म.६.) उक्त मंत्र में गति विशेष द्वारा विविध स्वभाव शाली काल के ९४ अंशों को चक्र की तरह वृत्ताकार कहा गया है। उक्त कालावयवों में १ सम्वतसर २ अयन ५ ऋतुयें १२ माह २४ पक्ष ३०

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eclipse sum

ग्रहण योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Eclipse sum – vaidik jyotish Shastra

  ग्रहण योग को वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में बनने वाला एक अशुभ योग माना जाता है जिसका किसी कुंडली में निर्माण जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं पैदा कर सकता है। वैदिक ज्योतिष में ग्रहण योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ राहु

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