परिचय:
प्रसवकाल में यदि पेट में दर्द बहुत अधिक हो, बच्चे को जन्म होने में देर हो तो निम्नलिखित प्रयोग करना चाहिए।
चिकित्सा:
1. ऊंटकटेरी: ऊंटकटेरी को पीसकर स्त्री के सिर, तालु में लेप करें इससे बच्चे का जन्म तुरंत हो जाता है। बच्चा होने के तुरंत बाद इस दवा को तुरंत निकालकर फेंक देना चाहिए क्योंकि इससे हानि होने की आशंका होती है। यह गर्भ तक को बाहर निकाल देती है।
2. अपामार्ग: अपामार्ग (चिरचिटा) को तीन अंगुल की मात्रा में उखाड़कर स्त्री की कमर में एक छोर बांधकर उसी छोर में एक तागा जिसमें दवा बीच में बंधी हो, दवा का सिरा स्त्री की योनि में रखना चाहिए। उस तागे का एक सिरा पेडू (नाभि) के नीचे बांध देते हैं और दूसरा सिरा कांख में बांध देते हैं। दवा को योनि में रखा रहने देते हैं। इस बूटी के इस प्रकार प्रयोग करने पर गर्भ का बच्चा बाहर आ जाएगा। बच्चे के पैदा होने पर दवा को निकालकर फेंक देना चाहिए।
3. गाजर के बीज: गाजर के बीज और कबूतर की विष्टा को आग में डालकर योनि में धुंआ दें। इससे गर्भ बाहर निकल जाता है। सांप की केंचुली का धुंआ देने से मृतक गर्भ भी बाहर हो जाता है।
4. बथुवा: बथुआ के बीज 20 ग्राम की मात्रा लेकर 500 मिलीलीटर पानी में पकाते हैं। इसे आधा रहने पर छानकर गर्म-गर्म ही औरत को पिला दें। इससे गर्भ बाहर आ जाएगा। एक इन्द्रायन (इडोरन) को पीसकर 50 ग्राम पानी में पका लें। पक जाने पर इसे निचोड़कर रस निचोड़ लें। रूई का फोहा इस पानी में भिगोकर योनि में बांधना चाहिए। इससे मृतक बच्चा भी गर्भ से बाहर आ जाएगा। यदि इडोरन ताजी हो तो पकाने की जरूरत नहीं है। इसके रस को गर्म करके सेवन करना चाहिए।
5. ढाक: ढाक के बीज पीसकर एक चम्मच की मात्रा में एक चौथाई चम्मच हींग के साथ ऋतुस्राव (माहवारी) शुरू होने के दिन से चार दिन तक सेवन करने से गर्भधारण करने की संभावना नगण्य होती है।
6. अरीठे: जिस गर्भवती महिला या जिसकी डिलीवरी हो चुकी हो उसका मस्तक भारी होकर घूमने लगता है, आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है और दान्त चिपक जाते हैं, उसे समझ लेना चाहिए कि उसे अनन्तवात या नन्दवायु-रोग हो गया है। उसकी आंख में अरीठे के फेन का अंजन करना चाहिए और दो-तीन दिन तक घी अथवा मक्खन आंखों में लगाना चाहिए।