परिचय-
जुकाम एक प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाला शारीरिक रोग है, जो सांस नली और फेफड़े को साफ करने के लिए उत्पन्न होता है। जुकाम के कारण ही शरीर के अन्दर की गन्दगी नाक के द्वारा बाहर निकल जाती है और सांस की नली साफ हो जाती है। इस रोग में नाक और गले से श्लेष्मा निकलता रहता है। यह रोग अधिक ठंड लगने, मीठी वस्तुओं को खाने के बाद पानी पीने से, मौसम परिवर्तन आदि के कारण उत्पन्न होता है। इस रोग में रोगी को हल्का बुखार, शरीर में दर्द, भूख का न लगना, शारीरिक कमजोरी तथा सिर दर्द आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। इस रोग में कभी-कभी खांसी भी उत्पन्न होती है। इस रोग के पुराने हो जाने पर रोगी को अधिक कष्ट होता है। इस रोग में शरीर में कमजोरी तथा शीत और गर्मी के प्रति असहनशीलता उत्पन्न होती है। इस रोग में मन्दाग्नि (भूख न लगना) जैसे लक्षण भी प्रकट होते हैं।
जल चिकित्सा द्वारा जुकाम का उपचार-
- जुकाम को दूर करने के लिए पहले शरीर को धीरे-धीरे खुली हवा को को बर्दाश्त करने की आदत बनानी चाहिए। ठंड और गर्मी के प्रति शारीरिक क्षमता बनाए रखनी चाहिए।
- जुकाम को दूर करने के लिए शरीर से पसीने निकालने वाली क्रिया करनी चाहिए।
- जुकाम में ´गीली चादर का लपेट´ करने से तुरन्त लाभ मिलता है।
- जुकाम में लाभ के लिए ´सम स्नान´ सप्ताह में 1 से 2 बार रात को सोते समय करना चाहिए।
- जुकाम होने पर सुबह उठकर ठंडे जल से स्नान करना चाहिए।
- सर्दी के मौसम में धूप में बैठकर शरीर पर तेल की मालिश करनी चाहिए।
- जुकाम को दूर करने के लिए कुछ शारीरिक व्यायाम जैसे- टहलना, तैरना आदि करने चाहिए।